मोदी के पास चुनौतियों से निपटने का रास्ता

0
249

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से अपने दूसरे कार्यकाल का पहला भाषण दिया। कुल मिला कर यह उनका छठा भाषण रहा। पहले पांच साल उम्मीदों, संकल्पों और वादों के थे। इसके आगे चुनौतियों के वर्ष हैं। भले इस समय राजनीतिक चुनौती नहीं दिख रही है पर भारत जैसे जाग्रत और जीवंत लोकतंत्र में सत्ता विरोध की एक अंतर्धारा हमेशा मौजूद रहती है, जो किसी भी समय सत्ता विरोध की लहर में बदल जाती है। फिर अभी राजनीतिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी आश्वस्त रह सकते हैं कि उन्हें निकट भविष्य में किसी गंभीर चुनौती से नहीं निपटना है। पर सामाजिक, आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियां बहुत बड़ी हैं, जिनसे निपटने का रास्ता प्रधानमंत्री को बताना होगा।

सबसे पहले सामाजिक चुनौतियों की बात करते हैं। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहले पांच साल इस देश में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी मिसाल पहले नहीं रही है। भीड़ की हिंसा कभी भी भारतीय समाज का हिस्सा नहीं थी। पर पिछले पांच साल में देश के लगभग हर हिस्से से मॉब लिंचिंग की घटनाएं सुनने को मिली है। गोरक्षा के नाम पर भीड़ के न्याय का यह क्रम शुरू हुआ था, जिसका दायरा अब बहुत बढ़ गया है। कहीं चोरी के शक में, कहीं बच्चा चोरी के शक में तो कहीं मवेशी चोरी के शक में लोग मारे जा रहे हैं तो कहीं जय श्री राम का नारा नहीं लगाने पर लोग मारे जा रहे हैं।

चुनावी राजनीति और राजनीतिक फैसले की वजह से एक नए किस्म की सामाजिक बेचैनी के संकेत मिल रहे हैं, जिसे समय रहते सरकार को समझना होगा। पश्चिम बंगाल में चुनाव दो साल बाद हैं पर जिस तरह का धार्मिक विभाजन वहां होता दिख रहा है पर वह पूरे भारत के लिए चिंता की बात है। ऐसे ही जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने का केंद्र सरकार का फैसला भी सामाजिक-राजनीतिक बेचैनी का संकेत दे रहा है। अभी तो संगीनों के साये में जम्मू कश्मीर में शांति दिख रही है पर वह वास्तविकता नहीं है।

इसी तरह तीन तलाक का कानून तो सरकार ने पास कर दिया और यह प्रचार भी कर दिया कि मुस्लिम महिलाओं के भाई नरेंद्र मोदी ने उनके जीवन की एक बड़ी समस्या दूर कर दी और उनका सम्मान बहाल कर दिया है। पर वृहद मुस्लिम समाज इसे इस रूप में नहीं ले रहा है। वह इसे अपने पर्सनल कानून में दखलंदाजी मान रहा है। ध्यान रहे इसी साल अयोध्या में राममंदिर और बाबरी मस्जिद के जमीन विवाद का फैसला भी आ सकता है।

यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है, जिससे बहुत सावधानी से निपटना होगा। जातीय आधार पर भी समाज का ऐसा विभाजन पहले कभी देखने को नहीं मिला, जैसा अभी है। राजनीतिक फायदे के लिए पार्टियां इसे और बढ़ा रही हैं। आरक्षण देने या बढ़ाने के फैसलों ने इस विभाजन को और गहरा कर दिया है।

सरकार के सामने तत्काल की सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक है। विकास दर से लेकर रुपए की गिरती कीमत, शेयर बाजार, कोर सेक्टर की मंदी, बेरोजगारी आदि ने लोगों का जीवन मुश्किल बनाया है। वाहन उद्योग अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। अलग अलग गाड़ियों के सवा दो सौ से ज्यादा शोरूम बंद हो चुके हैं और कहा जा रहा है कि साढ़े तीन लाख लोगों की नौकरी जा चुकी। दस लाख लोगों की और नौकरी इस उद्योग में खतरे में है। संचार उद्योग का भट्ठा बैठा हुआ है। भारत सरकार अपनी दो कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल का विलय करने जा रही है पर यह इन दोनों कंपनियों के बचने की गारंटी नहीं है। दो महीने पहले तक देश की सबसे बड़ी संचार कंपनी रही एयरटेल 16 साल में पहली बार घाटे में गई है।

भारत सरकार रेलवे से तीन लाख लोगों की छंटनी करने जा रही है। यहां तक कि सेना में अलग अलग सेवाओं से करीब पौने दो लाख लोग हटाए जाने हैं, जिनमें से 27 हजार लोगों की छंटनी तुरंत होने जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक सहित हर एजेंसी विकास दर का अनुमान घटा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 71 से ऊपर चली गई है। शेयर बाजार 40 हजार के अंक से गिर कर 37 हजार के आसपास आ गया है। आर्थिकी के जानकार इस बहस में उलझे हैं कि मंदी चक्रीय है या संरचनात्मक। पर इससे कुछ हासिल नहीं होना है। देश की आर्थिकी एक दुष्चक्र में फंस गई है, जिसे वहां से निकाल कर पटरी पर लाना होगा।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद एक नई कूटनीतिक चुनौती देश के सामने आई है। पाकिस्तान इस बहाने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछाल रहा है तो चीन भी इस फैसले से बुरी तरह बौखलाया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर के सामने उसने यह मुद्दा उठाया। अभी खबर है कि चीन के अखबार खास कर सरकारी अखबार जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग करने और उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले के विरोध में लेख और संपादकीय छाप रहे हैं। मानवाधिकार या धार्मिक भेदभाव किसी न किसी आधार पर भारत विरोधी ताकतें दुनिया के सामने भारत को बदनाम करने का प्रयास करेंगी। इसका कूटनीतिक असर जो होगा वह अलग है पर आर्थिक असर भयावह हो सकता है। पहले से घबराए विदेशी निवेशक ज्यादा आशंकित होंगे। उन्हें भी भरोसा दिलाना होगा। कुल मिला कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत चुनौतियों के साथ हुई है और उन्हें लाल किले से दूसरे कार्यकाल के अपने पहले भाषण में इन चुनौतियों से निपटने का रास्ता दिखाना होगा।

तन्मय कुमार
लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here