मोदी की सलाह

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दूसरे कार्यकाल में पहला बजट पेश होने के बाद अपने संसदीय क्षेत्र काशी आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि वे निराशावादी सोच रखने वालों की बातों पर तनिक भी ध्यान न दें। साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को अर्थव्यवस्था के नये सपने से जनता को जोडऩे का काम भी सौंप दिया। आम चुनाव बाद अब आगामी विधानसभाचुनावों के मद्देनजर उनका बजट भी खास बातों को लेकर जनकृजन के बीच पहुंचने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना संगठन को जीवंत बनाये रखने की दृष्टि से बेहद जरूरी है। शायद यही विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। मोदी ने बिना नाम लिये सरकार के 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के सपने को मुंगेरीलाल के हसीन सपने कहकर खिल्ली उड़ाने वाले बयावीरों को निराशावादी कहा। तंज भी किया कि ऐसे लोगों को भारतीयों के सामर्थ्य पर शायद भरोसा नहीं है। अपनी बात सलीके से कहने में बेशक प्रधानमंत्री का कोई जवाब नहीं है।

लेकिन अर्थव्यवस्था की जिस ऊंचाई का लक्ष्य तय किया गया है वह तार्किकता की मांग भी करता है। वैश्विक मंदी का दौ है, देश के भीरत पिछले कई तिमाही से उत्सादन के क्षेत्र में कमी आयी है। एफडीआई 64 अरब डॉलर रह गया है। ठीक है कि राजस्व घाटा 3-4 फीसदी पर रखने का लक्ष्य है। पिछले कार्यकाल में भी राजस्व घाटा नहीं बढऩे पाया था। लेकिन इसके लिए सरकारी खर्चों में किस कदर कटौती की गयी यह जगजाहिर है। कई विभागों में नई भर्तियां जरूरत होने के बाद भी नहीं हो रही हैं कि खर्च खर्च बढ़ जाएगा। रेलवे विभाग का तो और बुरा हाल है। बताया जा रहा है कि जो लोग ट्रेन संचालन से जुड़े होते हैं उन्हें औसतन 15-16 घंटे सेवाएं देनी पड़ रही हैं। दुर्घटनाओं के पीछे भी यही एक वजह बतायी जा रही है। बीएसएनएल और एमटीएनएल का हाल कितना बुरा है, इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि कर्मचारियों को वेतन देने के लाले लड़ रहे हैं। सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के जरिये सरकार आर्थिक चुनौतियों से निपटने की दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है तो इसका क्या मतलब निकाला जाए।

ठीक है, बैंकों का एनपीए कम करने के ईमानदार प्रयास हो रहे हैं पर इस सबके बीच यह सच्चाई तो है कि अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की जरूरत है। शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश से आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ जाएगी, आर्थिक रफ्तार से ही रोजगार की रफ्तार जुड़ी हुई है। गांव-गरीब से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं के लिए जो मौद्रिक तरलता चाहिए क्या अभी के हालात में संभव है। ऐसा नहीं है कि इन सवालों से सरकार वाकिफ नहीं है। शायद जनता को प्रेरित करने के इरादे से सरकार ने चुनौतियों की नहीं, अर्थव्यवस्था के नये लक्ष्य को सामने रखा है। खुद पीएम मोदी ने काशी में कहा भी कि लोगों में उत्साह बनाये रखना भी तो सरकार की जिम्मेदारी होती है। इस बात से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। उत्साह भरे वातावरण में कभी-कभी असंभव सा लगने वाला लक्ष्य सध जाता है। इसलिए 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य भी पाया जा सकता है बशर्ते युवाओं को अवसर मिले और किसानों को बिचौलियों से छुटकारा मिले। उम्मीद की जानी चाहिए मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उम्मीदों को आकार भी मिलेगा।

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