ममता का इतना निर्मम होना कतई ठीक नहीं

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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का 17 वां संसदीय चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से हो रहा था लेकिन प. बंगाल में जो दंगल आजकल देख रहे हैं, वह किसी कलंक के काले टीके से कम नहीं है। पहले तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा का तोड़ा जाना और फिर सड़कों पर हिंसा होना बंगाली संस्कृति की उच्चता पर प्रश्न-चिन्ह लगा देता है। विद्यासागरजी की प्रतिमा को उनके द्वारा 1872 में स्थापित कालेज के अंदर घुसकर तोड़ा गया। यही काम कुछ वर्षों पहले मार्क्सवादियों ने भी किया था।

विद्यासागरजी 19 वीं सदी के महान सुधारकों में से थे। उन्होंने विधवा विवाह के समर्थन में कानून बनवाया, उन्होंने बांग्लाभाषा का प्रचार-अभियान चलाया, बालिकाओं की शिक्षा शुरु की और अंग्रेजी भाषा की गुलामी का विरोध किया। उनके कॉलेज में कौन बड़े बंगाली महापुरुष नहीं पढ़े ? विवेकानंद से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर तक ! उस महान समाज-सुधारक की प्रतिमा को तोड़ने का आरोप भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के नेता एक-दूसरे पर लगा रहे हैं।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर का वर्तमान बांग्ला समाज में इतना आदर है कि उनकी मानहानि काफी मंहगी सिद्ध होगी। भाजपा के वोट कटेंगे या तृणमूल के, यह देखना है। दोनों पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं के बीच जो मारपीट हुई, उससे भी पता चलता है कि ममता बनर्जी कितनी घबराई हुई हैं। उन्होंने साढ़े तीन दशक के मार्क्सवादी शासन को बंगाल से उखाड़ फेंका था लेकिन उन हिंसक झड़पों की धारावाहिकता अभी भी जारी है। उन्हें समझ नहीं पड़ रहा है कि उत्तर भारत के ये भगवा नेता बंगाल में अपनी जड़ें कैसे जमा रहे हैं।

ममता ने भाजपा के चुनाव-प्रचार में भी कई अडंगे लगाने की कोशिशें कीं। ममता के दिल में डर बैठ गया है कि कहीं मार्क्सवादियों के वोट बैंक के दरवाजे भाजपा के लिए न खुल जाएं। 2014 में हारते-हारते भी मार्क्सवादी पार्टी को 30 प्रतिशत वोट मिल गए थे। यदि इस बार भाजपा के 16 प्रतिशत वोटों में 10-15 प्रतिशत भी नए वोट जुड़ गए तो ममता के प्रधानमंत्री के सपने पर पानी फिर जाएगा। उनके मुख्यमंत्री के पद पर भी बादल मंडराने लग सकते हैं। वरना क्या वजह है कि उन्होंने भाजपा की युवा नेता प्रियंका शर्मा को उनके एक आड़े-तिरछे फोटो के कारण जेल की हवा खिला दी।

बंगाल में हिंसा का अंदेशा इतना अधिक बढ़ गया है कि चुनाव आयोग ने चुनाव-प्रचार की अवधि एक दिन घटा दी है। इसमें शक नहीं है कि देश के सारे विपक्षी नेताओं में इस समय ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर हैं लेकिन पं. बंगाल में जो कुछ आजकल हो रहा है, उसको उनकी राष्ट्रीय छवि पर क्या असर पड़ रहा है, यह उनको समझना चाहिए। ममताजी इतनी निर्मम क्यों होती जा रही हैं ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं

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