भाजपा विधायकों की पीड़ा

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यूपी में सत्ताधारी दल भाजपा के विधायक खिलाफ भी नौकर शाहों के रवैये से परेशान हैं। हालांकि निजी दायरों में इस बाबत शिकायती सुगबुगाहटें होती रही हैं, लेकिन यह दर्द सार्वजनिक भी हो जाएगा, इसकी उम्मीद नहीं के बराबर थी। पर मंगलवार को विधानसभा में जो हुआ, उससे निच्श्रित तौर पर योगी सरकार की किरकिरी हुई है। मामला गाजियाबाद के बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर से जुड़ा था। उनका आरोप है कि गाजियाबाद पुलिस ने प्रताडि़त किया है, ,इस बात को वह सदन में उठाना चाहते थे पर मौका ना दिये जाने पर धरने पर बैठ गये, हालांकि बाद में कार्रवाई का आश्वासन मिलने पर मामले का पटाक्षेप हो गया। इस पूरे प्रकरण में दो बातें गौरतलब रहीं। एक, पार्टी के विधायकों ने भी स्वत: स्फूर्त अपने साथी विधायक का साथ दिया। दो, विपक्ष के सदस्यों ने भी इस मौके का फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की।

जो मंगलवार को हुआ, उसे समय रहते टाला जा सकता था। शीर्ष नेतृत्व के पास माना कि तमाम तरह की व्यस्तताएं रहती हैं लेकिन मंत्री के स्तर पर तो कम से कम विधायकों संग एक संवाद सेतु होना ही चाहिए। इससे अपने क्षेत्र विशेष में विधायकों को किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है, उसकी सीधे तौर पर बातचीत में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इससे प्रारंभ में ही यदि कोई पीड़ा है तो उसे दूर किया जा सकता है। जिस तरह बुधवार को गाजियाबाद के विधायक को सदन में अपनी बात रखने का मौका मिला, यह काम तो मंगलवार को भी हो सकता था। तब धरने की नौबत नहीं आती और योगी सरकार की फजीहत भी नहीं होती। पार्टी को अपार बहुमत मिला है और इसे आगे भी बनाये रखने की मंशा है तो उसका माध्यम विधायक ही हो सकते हैं, अधिकारी नहीं। क्षेत्र में विधायक जन प्रतिनिधि होता है, समाज के लोगों की अपनी अपेक्षा होती है।

उसे पूरा ना कर पाने की स्थिति में, स्वाभाविक है, विधायक का जनाधार खतरे में पड़ता है। जब विधायक की ही अफसर नहीं सुनते तो जनता का अपने जन प्रतिनिधि से मोहभंग होना स्वाभाविक है। यही वजह रही होगी कि मामला एक विधायक का था, सैकड़ों की तादाद में सााधारी दल के सदस्यों ने भी साथ देकर अपनी पीड़ा और आक्रोश को दर्ज कराया। योगी सरकार का अभी ढाई साल के करीब कार्यकाल शेष है। समय रहते विधायकों से एक निश्चित अंतराल पर संवाद की परिपाटी शुरू हो, जिससे संवादहीनता की स्थिति ना पैदा हो। अफसरों को भी यह संदेश दिए जाने की जरूरत है कि वे जन प्रतिनिधियों के सहायक हैं, माध्यम हैं, आका नहीं। जो भी जनहित में है और नीतिगत भी, उसका अनुपालन हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में शिकायतों के हालात ना पैदा हों। हालांकि कुछ महीनों पहले खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधायकों को अलग से समय देकर उनकी समस्याओं को समझने की पहल की थी।

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