बलात्कार, एनकाउंटर और हम

0
301

पिछले कुछ दिनो से देश में सड़क से ले कर संसद तक दो ही मुद्दे हावी है। एक उन्नाव में युवती के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसे जिंदा जलाने का है तो दूसरा तेलंगाना में एक महिला डाक्टर के साथ बलात्कार कर उसे निर्ममता के साथ मारने का हैं। कई बार मैं काफी परेशान हो जाता हूं क्योंकि हर चैनल, हर अखबार में बुद्धिजीवी इन्हीं दोनों मुद्दों पर बहस कर रहे हैं।

उन्नाव वाला मामला बहुत जघन्य है।90 फीसदी जली युवती ने अपना दम तोड़ दिया है। पहले भी इससे मिलती-जुलती घटना उन्नाव में हो चुकी है। जहां एक अपराधी ने युवती को जीप से कुचल कर मारने की कोशिश की थी। वहीं तेलंगाना वाले मामले में दो तरह की बहस हो रही है। मैं एक-एक कर दोनों मामलों को लूंगा।

असल में अभी लोग निर्भया का मामला भूले भी नहीं थे जिसके कारण तत्कालीन सरकार ने कानून में बदलाव किए थे। उसके बावजूद अभी तक किसी भी अपराधी को सजा नहीं दी जा सकी है व निर्भया के मां-बाप अभी भी अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले लोगों को फांसी की सजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। मुझे याद है कि तब भी पूरे देश में गजब का हंगामा हुआ था व प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन तक का घेराव किया था। संसद में भी जमकर हंगामा हुआ था।

तब सरकार ने एक निर्भया फंड भी बनाया था ताकि बलात्कार की पीडि़त महिलाओं को आर्थिक मदद की जा सके। तब सरकार को शायद यह पता था कि अभी तो बस शुरुआत होगी आगे और ऐसे मामले आएंगे। अतः इसके लिए बजट का प्रावधान करना बहुत जरूरी है। यह बात अलग है कि बाद में खबरे छपने लगी कि इससे किसी की भी मदद नहीं की गई।

इस तरह की घटनाएं न जाने कब से होती आई हैं। मुझे याद है कि जब इंदिरा गांधी शासन में थी तब मेरठ में ऐसा ही एक कांड ममता त्यागी का हुआ था। जिसमें एक जाट महिला के साथ पुलिस वाले ने बलात्कार कर उसके कोमल अंग भंग हुए थे। तब देशव्यापी हंगामा हुआ था व चरणसिंह के हनुमान माने जाने वाले राजनारायण ने नारा दिया था कि इंदिरा गांधी जाएगी बलात्कार की आंधी में। मगर सिलसिला जारी रहा और निर्भया कांड के बाद भी नहीं रूका। कानून बनने से भी कोई अंतर नहीं पड़ा।

वैसे मेरा मानना है कि कानून तो सिगरेट के पैकेट पर छपे कैंसर ग्रस्त फेफड़े की फोटो की तरह होता है जिसमें लिखा होता है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसके बावजूद लोग सिगरेट पीना जारी रखते हैं। वैसे मैं तो यहां तक मानता हूं महिलाओं के साथ जोर-जबरदस्ती कर उन्हें अपना शिकार बनाना तो पुराण कथाओं से चला आ रहा है। न जाने कब से ऐसा होता आ रहा है। हमारे महाकाव्य व धार्मिक ग्रंथ है, रामायण व महाभारत। दोनों का ही आधार महिलाएं ही हैं। रावण सीता की सुंदरता से वशीभूत होकर उन्हें उठा ले गया था। पर वह विद्वान ब्राह्मण था। अतः उसने उन्हें महिला पुलिस की देख-रेख में रखा व उसके साथ जबरदस्ती नहीं की। वहीं लक्षमण जैसे पुरूष ने सूर्पण खा का प्रणय निवेदन करने पर उसके नाक कान काट डाले थे। किस समय समाज में ऐसा देखने को मिलेगा। वहीं महाभारत तो इससे भी दो हाथ आगे हैं जहां एक देवर अपनी भाभी कूंती का सरेआम भरी सभा में चीरहरण करता है। क्या कोई आम आदमी आज की तारीख में ऐसा करने की बात भी सोच सकता है?ये कथाएं हम लोगों के रामराज्य और अपने धर्मग्रंथों के जीवन सार, दर्शन में उल्लेखित है।

फिर मसला तेलंगाना में अभियुक्तो की एनकाउंटर में हत्या का है। इसको लेकर दो तरह की बाते कही जा रही है जहां शिकार लड़की का परिवार इस घटना से प्रसन्न है वहीं मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए है। इस मुद्दे पर दो दलीले दी जा रही है। पहली यह कि अपराधी भी बच निकलते हैं अतः उन्हें मारने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है। पहली बार ‘पुलिस एनकाउंटर’ शब्द राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है कहे जाने वाले वीपी सिंह ने दिया था। जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और डकैतो ने उनके न्यायाधीश भाई की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इसके बाद तो उनसे पुलिस को अपराधियों के सफाए की हरी झंडी सी मिल गई। फिर दनादन एनकाउंटर होने लगे। पुलिस वाले असली अपराधी को पकड़े न जाने पर अक्सर गरीब मजदूरो, किसानो, रिक्शा चालको को फर्जी एनकाउंटर में मारकर अपने नंबर बढ़ाते। वह बहुत गलत था।

मुझे याद है कि कई साल पहले मैं पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल अर्जुन सिंह व कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ भोपाल जा रहा थो। तब रास्ते में दिवंगत वसंत साठे ने उनसे आतंकवादियां को चुन-चुनकर मारने के लिए अभियान छेड़ने को कहा। इस पर अर्जुनसिंह ने कहा कि उस हालत में तमाम निर्दोष लोगों के मारे जाने का भी खतरा है। इस पर साठे ने जवाब दिया था कि आज भी तोनिर्दोष मारे जा रहे हैं। तब कम-से-कम उनके साथ अपराधी भी तो मरने लगेंगे।

जब लालकृष्ण आडवाणी भारत के गृह मंत्री थे तब दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने मुझे बताया था कि हमें ऊपर से आदेश दिए गए है कि आतंकवादियों को गिरफ्तार मत करो व उन्हें मार दो क्योंकि कोई उनके खिलाफ गवाही नहीं देता और वे छूट जाते हैं। यह सत्य है कि जिस परिवार के सदस्य के साथ ऐसी घटनाएं घटती है वह तो इस तरह के एनकाउंटरो का सदा समर्थन करेगा जबकि अन्य विरोध करेंगे। यह कहावत है ना कि जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।

जो हो, हर युग में महिलाओं को ही सहना पड़ा। कुंती को तो सूर्य ने भगवान होते हुए नही छोड़ा था व उसे गर्भवती करके छोड़ गए थे व उसके अवैध बेटे कर्ण को जीवन भर यह दुख झेलना पड़ा। अहिल्या के साथ इंद्र ने क्या किया। फिर भी हमारे धर्मग्रथों में लिखा हुआ है कि कभी बुरे आदमी का बुरा नहीं होता। राम की पत्नी उठाकर ले जाने वाला रावण व उनके हाथ मारे गएराक्षस स्वर्ग गए। यह दुर्गादेवी के साथ युद्ध करने वाले शुभ निशुभ राक्षसो व उनकी सेना के लोग भी देवी के हाथ मरकर स्वर्ग गए।

मतलब यह कि स्वर्ग तो मानो कल्याणपुरी या त्रिलोकपुरी है जहां अवैध रूप से भारत में रोहिंगया से लेकर बांग्लादेशी तक आराम से रह सकते हैं और उनका कुछ नुकसान नहीं होगा। मतलब व्यवस्था ही ऐसी बनी है कि अपराध करने में कोई बुराई नहीं है क्योकि बुरे आदमी का कभी बुरा नहीं होता।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here