बनारस में सत्य की ही जीत हुई

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बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में डॉक्टर फिरोज खान की नियुक्ति का मामला सुलट गया है। डॉक्टर फिरोज खान को इस्तीफा देना पड़ा। तथाकथित खूले विचारों वाले स्वयंभू हिन्दू बुद्धिजीवी गलत साबित हुए और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हड़ताली छात्र सही साबित हुए। सत्य की जीत हुई। असत्य यह कि उन की नियुक्ति सनातन हिन्दू धर्म विभाग में हुई थी और उन्हें संस्कृत का प्रोफेसर बता कर प्रचारित किया गया ताकि हड़ताली छात्रों और इस बहाने सभी हिन्दुओं को दकियानूसी बताया जा सके। टीवी चैनलों से साम्पदायिक जहर फैलाने वाले जिन्नावादी मुस्लिम नेताओं को बहस में बुला कर हिन्दुओं दिकियानूसी साबित करने की भरसक कोशिश की। लेकिन इस हड़ताली छात्रों पर कोई असर नहीं हुआ, उन की हडताल जारी रही। छात्रों की जीत नए हिन्दू नवजागरण का प्रतीक है। करीब-करीब सारा हिन्दू समाज उदारवाद की हवा में बहते हुए हिन्दू छात्रों का विरोध कर रहा था, क्योंकि उन्हें हिन्दू धर्म की बारीकियां समझाने वाला एक मुस्लिम मिल गया था।

वे इसी बात पर गदगद हुए फिर रहे थे। इसी उदारवाद के कारण ही हिन्दूओं की यह हालत हुई है कि इस्लाम के नाम पर मुस्लिम राष्ट बना लेने के बावजूद वे सेक्यूलरिज्म के नाम पर भारत में शरणार्थी बन कर फिर से घुसना चाहते हैं। और खुद को सेक्यूलर बता कर भारत में रह गए मुस्लिम उन्हें भारत में शरण देने के लिए जगह-जगह आगजनी कर रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार ने पडौसी मुस्लिम देशों से घुसपैठ करने वाले मुस्लिमानों को भारत में शरण नहीं देने का कानून बना दिया है। तथाकथित सेक्यूलर हिन्दुओं की जो उदारता डॉक्टर फिरोज खान की संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग से नियुक्ति पर दिखी थी, वही उदारता गांधी की भी थी। गांधी की उस मुस्लिम उदारवादिता के कारण ही नाथू राम गोडसे ने गांधी की हत्या की थी। गोडसे का गांधी की हत्या करने का तात्कालिक कारण यह था कि सरदान पटेल ने पाकिस्तान के कश्मीर पर हमले के कारण उसे दी जाने वाले 55 करोड़ की दूसरी किश्त रोक दी थी और गांधी ने इस के खिलाफ आमरण अनशन की धमकी दी थी।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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