जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के एक महीने बाद देश के लिए अच्छी खबर यह है कि इन दिनों में कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। पाकिस्तान और उसकी शह पर यहां भी कुछ लोगों के बयानों में अशांति और अफरा-तफरी की निरंतर झलक दिये जाने के बावजूद जम्मू और श्रीनगर में जनजीवन सामान्य हो रहा है। कई क्षेत्रों में जहां शान्ति का वातावरण बन रहा है, वहां संचार सेवा भी बहाल हो रही है। स्कूल-कॉलेज खुले गये हैं। यह ठीक है कि अभी अभिभावक अतीत को याद करते हुए अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं लेकिन चौतरफा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच घाटी के भीतर अलगाववादी ताकतों को मुंह की खानी पड़ रही है। वहीं पाकिस्तान की सीमा से लगी भारतीय चौकियों की सजगता आपात स्थितियों में और बढ़ गयी है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी की भारतीय सेनाएं माकूल जवाब देते हुए आतंकियों की घुसपैठ को भी नाकाम कर रही हैं। यही वजह है कि घाटी में आतंकी घटनाएं नहीं हो पा रही हैं।
पाकिस्तान की निराशा बढ़ गयी है, स्वाभाविक है पर भारतीय विपक्ष की हताशा समझ से परे है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी को लगता है कि हाल फिलहाल की शांति किसी ज्वालामुखी के फटने से पहले की स्थिति है। 370 हटाये जाने के बाद से ही विपक्ष की हायतौबा से कई गंभीर सवाल उठे हैं। पहला, क्या संसद की तरफ से आये निर्णयों से विपक्ष खुद को अलग कर सकता है? दूसरा, अनुच्छेद 370 के हटने से जम्मू-कश्मीर के लिए क्या अनुचित हुआ है? जवाब है विपक्ष के पास? तीसरा, जम्मू- कश्मीर का स्टेटस बदले जाने से पाकिस्तान के विरोध की वजह खुले तौर पर अप्रासंगिक हो गयी है, क्या यह अच्छा नहीं हुआ? आखिरी सवाल, 370 के चलते आतंक वाद की जड़ें घाटी में जम रही थीं और निर्दोष कश्मीरी भी अराजकता की स्थिति में सामान्य जिन्दगी से दूर हो रहे थे, क्या इसे जारी रहने दिया जाता? विपक्ष की उलझन यही है कि 370 से फायदा क्या था, यह नहीं बता पा रहा, इसलिए अनुच्छेद हटाये जाने के तरीके पर सवाल उठा रहा है। हालांकि इसकी व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट को करना है।
हर बात के लिए विरोध के बजाय जो देशहित में है, उसका समर्थन करना चाहिए। अब तो अच्छा हुआ कि अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर भारत के कदम को आंतरिक मामला बताते हुए ढेर सारे देश कोई विपरीत टिप्पणी नहीं कर रहे। हालांकि पाक पीएम ने कश्मीर के लिए सारे घोड़े खोल रखे हैं। यह बात और है कि हर जुमा कश्मीर के प्रति एक जुटता दिखाने की कवायद तो पहले दिन ही दम तोड़ गयी। इस बीच बदली परिस्थितियों में सरकार की तरफ से रोजगार और विकास के प्रबंध किये जा रहे हैं। सेना और सुरक्षा बलों में कश्मीर और लद्दाख के युवकों के लिए भर्ती मेला शुरू किया जा रहा है। यहां के विकास के लिए प्रधानमंत्री ने अपने वैश्विक दौरे में उद्यमियों से निवेश का आह्वान किया है। पर्यटन के तौर पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख एक बड़ा रोजगार व राजस्व जुटाने का स्रोत हो सकता है। स्थिति पूरी तरह सामान्य होने और आतंक वाद से मुक्ति के माहौल में ही विकास की संभावना को आकार मिलेगा। इस दृष्टि से सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है। अब, जब स्थितियां सामान्य की ओर हैं तब उसका स्वागत किया जाना चाहिए। सियासत के लिए तो और भी मुद्दे हैं, विपक्ष को उस पर निशाना साधना चाहिए।