महाराष्ट्र का सत्ता संग्राम, सुप्रीम कोर्ट, संसद से होते हुए दिल्ली की सड़कों तक पहुंच गया है। रविवार को आपात स्थितियों में सुनवाई के बाद प्रतिपक्ष इस उम्मीद में था कि सोमवार के लिए कोर्ट से फ्लोर टेस्ट का आदेश जारी हो जाएगा लेकिन ऐसा सोमवार को भी नहीं हो सका। अब लोगों की नजर इस पर है कि मंगलवार को किसके हक में मंगल होगा। देश की आर्थिक राजधानी मुम्बाई इस वक्त लोकतंत्र के चीरहरण की साक्षी बनी हुई है। एनसीपी और कांग्रेस के माननीयों को होटलों में एका साथ रखा गया है ताकि बीजेपी की तरफ से कथित हार्स ट्रेडिंग न हो सके । शिवसेना पहले से ही अपने विधायकों को निगरानी और एनसीपी नेता अजीत पवार के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी है। आरोप है कि उपमुख्यमंत्री एवं शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने फर्जी ढंग से पार्टी विधायकों के हस्ताक्षरित पत्र का इस्तेमाल किया है। हालांकि अब एनसीपी अध्यक्ष शरद वार ने अपने भतीजे को विधाक दल के नेता पद से हटाते हुए जयंत पाटिल को नया नेता चुना है।
राज्यपाल के विवेक पर विपक्ष सवाल उठा रहा है, पर यह की सच है कि राजभवन ने भाजपा, शिवसेना और एनसीपी को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। लेकिन तीनों ने किसी ना किसी कारण हाथ खड़े कर दिये थे अथवा और वक्त दिये जाने की मांग की थी। इसी के बाद राष्ट्रपति शासन लग गया। इस बीच शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की बैठकें तो होती रहीं लेकिन सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर सहमति नहीं बन पाई। पर दूसरी तरफ बीजेपी और एनसीपी नेता अजीत पवार ने नये गठबंधन और सहमति का प़त्रक सौंपते हुए राज्यपाल की अनुशंसा प्राप्त कर ली। इसी के बाद घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ कि सुबह आठ बजे शपथ समारोह होने के बाद मीडिया को जानकारी हुई अइौर इसके बाद देश भर में यह चर्चा का विषय बन गया। टाइमिंग को लेकर सवाल उठे हैं बेशक पर इस मामले में संविधान खामोश है। अब असली एनसीपी विधायक दल का नेता कौन है, इसका फै सल सदन में विश्वास मत परीक्षण से सही संभव है।
इस सबके बीच दिलचस्प यह है कि जिस पर फर्जीवाड़े का आरोप है, उस अजीत पवार को एनसीपी के बड़े नेता मनाने में लगे हुए हैं। खुद शरद पवार ने भी अपने राजनीतिक गुरू यशवंत राव चव्हाण की जलभूमि पुणे में सोमवार को यह कहकर नई संभावनाओं को बल दे दिया कि अजीत पवार की नाराजगी के पीछे वजह की ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्री पद, जिसे शिवसेना ने ठुकरा दिया था। शायद यह खटास अब भी मौजूद है। वजह यह कि सोमवार को मुम्बई में एनसीपी-कांग्रेस ने जो समर्थन पत्र सौंपा है, उसमें नेता पद का जिक्र ही नहीं है। इससे यह समझने में आसानी हो जाती है कि मामला लंबा खिंचने की एक बड़ी वजह मुख्यमंत्री पर रहा होगा, जिस पर एनसीपी चाहती थी कि बारी-बारी से शिवसेना और पवार की पार्टी का नुमाइंदा बैठे। शायद इसीलिए अजीत पवार ने बीजेपी की तरफ हाथ बढ़ाया हो कि जब उपमुख्यमंत्री ही बनना है तो 105 सदस्यों वाला दल ज्यादा ठीक है। शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा कि राज्य में स्थिरता के लिए उन्होंने बीजेपी से रिश्ता जोड़ा है।