पीओके पर बड़ा बयान

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आर्मी चीफ का पद संभालने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने पाक अधिकृत कश्मीर पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि संसद से आदेश मिला तो पीओके पर सेना कजे की कार्रवाई करेगी। यह पाकिस्तान के लिए सत संदेश भी है। हालांकि इससे पहले भी पूर्व आर्मी चीफ एवं मौजूदा सीडीएस विपिन रावत ने भी पीओके पर सेना का दृष्टिकोण रखा था। पिछले महीनों में विदेश मंत्री एसण् जयशंकर ने भी यही बात दोहराई थी। दरअसल कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने के बाद से ही इसके आसार प्रबल हो रहे थे कि भारत सरकार के निर्देश पर सेना आगे बढ़ सकती है। इस बारे में सन् 1994 में तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने संसद के संयुक्त सत्र में पीओके पर एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कराया था। इसमें पाक अधिकृत कश्मीर हमारा है, उसे भी आजाद कराने का संकल्प व्यक्त किया गया था। तो इस लिहाज से तबसे भारत की सर्वसम्मत नीति है, जिसको मौजूदा आर्मी चीफ ने दोहराया है। राजनीतिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। इसी इलाके का पाकिस्तान लम्बे अरसे से भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए इस्तेमाल करता आया है।

सामरिक दृष्टि से इसका महत्व जगजाहिर है। कश्मीर को धरती का जन्नत इसीलिए कहा गया कि पाक अधिकृत कश्मीर प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना भारतीय हिस्से का कश्मीर अधूरा है। इसके अलावा भी यह क्षेत्र मिडिल ईस्ट के देशों से जोड़ता है। चीन इसी का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान को लम्बे अरसे से पालता-पोसता आया है। यही कारण था कि जब कश्मीर का विशेष दर्जा हटने के साथ उसकी हैसियत केन्द्र शासित प्रदेश की हो गई तब चीन का यह अनुमान लगाना स्वाभाविक ही था कि आने वाले वर्षों में पाक अधिकृत कश्मीर के लिए भारत पहल कर सकता है। इसीलिए चीन भी चाहता रहा कि कश्मीर विवाददोनों देशों के बीचा बना रहे ताकि उसकी व्यापारिक और सामरिक महत्वाकांक्षाएं फलीभूत होती रहें। भारतीय घटनाक्रम के बाद चीन ने पाकिस्तान का ध्यान देने के इरादे से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर पर औपचारिक चर्चा कराने की कोशिश की पर बहुमत के अभाव में अनौपचारिक बनकर रह गई, जिसका सार्वजनिक तौर पर भी प्रभाव नहीं पड़ा।

पाकिस्तान इसीलिए विश्व के हर मंच पर मुद्दे को गरमाने की कोशिश करता रहा लेकिन भारतीय राजनय और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बौद्धिक मोर्चे पर लामबंदी की बड़ी भूमिका रही। तुर्की और मलेशिश को छोड़ दें तो बाकी मुस्लिम देशेां ने कश्मीर को आंतरिक मसला बताते हुए पल्ला झाड़ लिया। यही पाक पीएम इमरान की परेशानी है। इसीलिए उनके मंत्री अनर्गल प्रलाप करते रहे हैं। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान निजाम अपने लोगों को यह सपना दिखाता रहा कि भारत के हिस्से का कश्मीर उनका हो जाएगा। इसी सपने पर सियासी और मिलिट्री मंसूबे फलते-फूलते रहे हैं। कश्मीर की सूरत बदलने से हालात बदलने का अंदाजा हो चुका है। मोदी सरकार का अगला कदम पीओके हो सकता है। भारतीय सेना की तसफ से इसी तरह के बयान देश के निहितार्थ को व्यक्त कर रहे हैं। यह जरूरी भी है, कश्मीर में वाकई अमन-चैन की बहाली करनी है तो पीओके को लेना ही होगा अन्यथा सीमा पार आतंकवाद की समस्या पहले जैसी अब भी बनी रहेगी। वैसे भी भारतीय हिस्से के कश्मीर में विशेष दर्जा हटने के बाद सियासी जमातों की जुबान भी बदली है। स्थानीय स्तर पर पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में पचास फीसदी से ज्यादा कमी आई है।

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