पीओके पर बड़ा बयान

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मोदी सरकार के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का पाक अधिकृत पर बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत का हिस्सा है और उम्मीद करते हैं एक दिन भारत के भौतिक अधिकार क्षेत्र में होगा। हालांकि 1994 में इस आशय का देश की संसद ने संकल्प पारित किया था, जिसमें सभी दलों ने पीओके को भारत का हिस्सा माना था। इसलिए फौरी तौर पर यह बयान नया नहीं है। जम्मू-कश्मीर पर जब लोक सभा में चर्चा हो रही थी तब खुद गृहमंत्री अमित शाह ने भी पीओके को लेकर कहा था कि अब उसे देश में शामिल करने का वक्त आ गया है। तबसे भाजपा और संघ के दर्जनों नेताओं ने यही बात दोहरायी है। इसी श्रृंखला में विदेश मंत्री की तरफ से भी उसी तरह का बयान आया है। दरअसल जब पीओके की बात होती है तब अक्साई चीन की बात भी उठती है, जो चीन के कब्जे में है। शायद यह भी एक खास वजह रही कि चीन को भी अनुच्छेद 370 का हटाया जाना अच्छा नहीं लगा। प्रतिक्रिया में चीन की चिंता साफ दिखी।

साथ ही उसकी एक चिंता और उल्लेखनीय है कि पीओके के एक हिस्से पर चीन का सीपेक यानि कॉरिडोर बन रहा है, जिस पर चीन ने अरबों डालर का निवेश किया है। चीन की मंशा है कि उस कॉरिडोर से मध्य एशिया के तमाम मुल्कों में उसकी व्यापारिक गतिविधियों को क फायती और सीधा विस्तार मिलेगा। इसलिए पीओके पर भारत की नजर से चीन भी दिक्कत में आ सकता है। इसकी एक बानगी हाल ही में अरूणाचल स्थित भारत- चीन सीमा पर सैनिकों के बीच गुत्थमगुत्थी रही है। हालांकि दोनों देशों के फौजी अफसरों की समन्वय बैठक के बाद मामला सुलझ गया। तो चीन की खींझ साफ -समझ में आती है। वैसे भी उसके साथ 1962 की लड़ाई के बाद से ही जटिल किस्म के सीमा विवाद हैं। उस दिशा में वार्ताएं समय-समय पर होती रहती हैं। हालांकि पाकिस्तान जैसे रिश्ते चीन के साथ नहीं है। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो पीओके को लेकर उसकी तरफ से कई तरह की आशंकाएं जताई जाती रही हैं। पाक पीएम ने पीओके के बाशिंदों के साथ एक जुटता के लिए रैली भी की थी।

इधर एक बार फिर पीओके को लेकर विदेश मंत्री के बयान से सरगर्मी बढ़ गई, स्वाभाविक है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके है कि अब पाकिस्तान से बातचीत होगी तो पीओके पर होगी। सवाल है, वो रास्ता क्या होगा? भारत-पाक के रिश्ते पहले से और बिगड़े हुए हैं। कश्मीर में सुरक्षा वालों की सख्ती के चलते पाक अपने आतंकियों की घुसपैठ करा पाने में अब तक नाकाम रहा है। इससे उसकी कुंठा बढ़ी हुई है। जम्मू-कश्मीर में बीते डेढ़ महीने से जो शांति है वैसी 1990 के बाद से अब तक नहीं रही। लेकिन पाक की तरफ से जारी आतंक वाद के चलते उससे बातचीत की फिलहाल तो दूर-दूर तक संभावना नहीं दिखती। ऐसी स्थिति में वार्ता न होने पर क्या युद्ध जैसी कोई स्थिति पैदा होगी। क्योंकि युद्ध का रास्ता तो किसी के लिए भी वाजिब नहीं होगा। एक और बात विदेश मंत्री की गौर करने लायक है। उन्होंने भारतीय दृष्टिकोण साफ करते हुए यह भी कहा कि एक सीमा के बाद इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है कि कश्मीर पर लोग क्या कहेंगे।

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