पाकिस्तानी पीएम इमरान ने फिर अलापा राग-कश्मीर

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने फिर कश्मीर राग अलापा है। इस बार उन्होंने इस काम के लिए 5 अगस्त का दिन चुना है, क्योंकि पिछले साल 5 अगस्त को ही भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर की विशेष हैसियत खत्म की थी और उसे दो हिस्सों में बांटकर केंद्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया था। धारा 35 ए और 370 को बिदा कर दिया गया था। इमरान ने पाकिस्तानी कश्मीर की विधानसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय कश्मीर भी पाकिस्तान का ही है। इस पर मेरे कुछ मित्रों ने मेरी प्रतिक्रिया मांगी तो उनको मैंने कहा कि पाकिस्तान ने भारतीय कश्मीर को भी नए नक्शे में अपना हिस्सा बता दिया है तो यदि हम पूरे पाकिस्तान को भी नक्शे में अपना हिस्सा बता दें तो क्या होगा ? इमरान ने भारत द्वारा कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के चार कारण बताए हैं और उन्हें निराधार कहा है।

वे वास्तव में सच्चे कारण हैं और उनके ठोस आधार हैं। पहला कारण, भाजपा ने अपने हिंदू वोट पटाने के लिए कश्मीर का पूर्ण विलय किया है। हिंदू वोट निश्चय ही बढ़ेगा। दूसरा, पाकिस्तान चुप रहेगा, क्योंकि वह भारत से दोस्ती चाहता है। यहां इमरान गलत हैं। उन्होंने यह कैसे मान लिया कि मोदी की सरकार उनसे दोस्ती चाहती है। पाकिस्तान चुप तो नहीं रहेगा लेकिन उसकी कोई भी सुननेवाला नहीं है, चीन के अलावा। किसी इस्लामी देश ने भी कश्मीर पर कुछ नहीं बोला। तीसरा, सारी दुनिया चीन से नाराज़ है। वह भारत को चीन से लड़ाना चाहती है। इसलिए चुप रहेगी। यह बात अमेरिका पर कुछ हद तक लागू हो सकती है लेकिन अन्य देशों का इससे क्या लेना-देना है ? चौथा, भारत ने सोचा कि वह कश्मीर को डंडे के जोर पर दबा लेगा। यदि कुछ लोग हिंसा, आतंक और तोड़-फोड़ पर उतारु होंगे तो किसी भी राज्य का फर्ज क्या होगा ? उन पर वह क्या फूल बरसाएगा ? जरुरी यह है कि कश्मीर का मसला बातचीत से हल हो।

इमरान के आरोप कितने ही खोखले हों लेकिन कश्मीर को अब खुलना चाहिए। सारे कश्मीरी नेताओं को खुलकर मैदान में आने देना चाहिए। यदि फारुक अब्दुल्ला ने वर्तमान स्थिति पर संवाद के लिए अपने घर पर कश्मीरी नेताओं की बैठक बुलाई थी तो उसे सरकार ने क्यों नहीं होने दिया ? इस सरकार की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह नौकरशाहों पर पूरी तरह से निर्भर है। इसके पास ऐसे विश्वसनीय और गंभीर लोगों का अभाव है, जो भाजपा और सरकार में न होते हुए भी इतने प्रभावशाली हैं कि वे भारत-विरोधी देशी और विदेशी नेताओं से सीधा संवाद कर सकें।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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