पहले अल्लाह…अब राम

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आज हमारे देश में एक नयी बीमारी ने जन्म लिया है जिसको हम सब मोब लिंचिंग के नाम से जानते हैं! बात चाहे तबरेज अंसारी की हो या ध्रुव त्यागी की खून इंसानियत का ही बहता है! पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था अपना काम कर रहे हैं लेकिन क्या हमने सोचा है कि हमारे समाज का इस समस्या को सुलझाने में क्या योगदान होना चाहिए? जिस देश में हिन्दू और मुसलमान सगियों से सर्व धर्म समभाव की भावना से रहते आये हैं! जिस देश में अशफाक उल्लाह खान जैसे वीरों ने वन्दे मातरम बोलते हुए अपनी जान गंवा दी, आज ऐसा क्या हो गया कि उस देश के मुसलमान को अपनी देशभक्ति साबित करनी पड़ती है? यह वो बीमारी है जिसके बीच हमारे देश में 1857 की क्रान्ति के बाद ही पड़ने शुरू हो गए थे! अंग्रेजों को यह पता चल गया था कि अगर हिन्दू और मुसलमान एक होकर रहा तो भारत को ज्यागा दिन गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता इसलिए उन्होंने बांटो और राज करो की नीति शुरू कर दी जिसको बाद में आजाद भारत की तत्कालीन सरकारों द्वारा और बढ़ाया गया।

धर्म के नाम पर मुसलमानों को धीरे-धीरे मुख्यधारा से तोड़ा गया! 1867 में देवबंद का दारुल उमूल इदारा खोला गया और मुसलमानों को मदरसा एजुकेशन की तरफ मोड़ा गया! 1937 में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट लागू करके उनको अगल कानून दे दिया गया! पहले उनका रहन-सहन पहनावा अलग किया गया। फिर यह बोलते हुए की हिन्दू मुस्लिम साथ नहीं रह सकते, दो राष्ट्र की थ्योरी को ईजाद करके देश को दो टुकड़ो में बाट दिया। कत्ल ऐ आम हुआ, बहन-बेटियों का बलात्कार हुआ ! यह सब कुछ हुआ अल्लाह के नाम पर…शरीया के नाम पर! आज मुसलमानों के जो कथित ठेकेदार बैठे हुए हैं चाहे वो मौलाना हो, आलिम हो, मुफ्ती हो, देवबंद का दारुल उलूम हो, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, मजबही या सियासी वेता हों वो सब जिम्मेदार हैं मोब लिंचिंग के लिए। हत्यारों के साथ-साथ इस सब के ऊपर भी मोब लिंचिंग में मारे गए लोगों के खून के छीटें हैं! इन्हें नहीं पता था कि शरीया के और अल्लाह के नाम पर इन्होंने जो अलगाववाद फैलाया उसकी कभी न कभी प्रतिक्रिया होगी?

एक आम मुसलमान को, एक निहत्थे मुसलमान को, एक मजबूर मुसलमान को इन सब के किये हुए, गुनाहों की सजा मिल रही है! कभी यह संसद में खड़े होकर कहते हैं कि हम वन्दे मारतम नहीं बोलेंगे, कभी यह देश की फौज पर पत्थर बरसाते हैं। कभी ट्रिपल तलाक, हलाला, बहु विवाह जैसी समाजिक कुरीतियों को इस्लाम बता कर बदलने से इंकार कर देते हैं! कभी आतंकवादी के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा देते हैं तो कभी एक मजबूर तलाकशुदा बुजुर्ग औरत का गुजारा भत्ता रुकवाने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं! सब ने मिलकर हमारे मुल्क में जो कट्टर कौमियत का चलन चलाया उसके दूरगमी परिणाम होने ही थे। यह लोग इस्लाम के नाम, पर शरिया के नाम अपनी अपनी गद्दियों पर बैठ अपनी अलगाववादी और संकीर्ण सोच के कारण इस्लाम, कुरान और मुसलमान तीनों को बदनाम करते हैं! काश यह समझ सकते कि अल्लाह के इस्लाम में और इनके इस्लाम में कितना फर्क है? मैं यह नहीं करती कि मोब लिंचिंग की प्रतिक्रिया सही है लेकिन हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है इस सच्चाई को कोई नकार नहीं सकता।

सुबूही खान
लेखिका एडवोकेट और समाजिक कार्यकर्ता हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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