परोपकार से आत्मा आनंदित होती है

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स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद

दौड़ती भागती जिंदगी और इसकी चुनौतियां। इनमे हम इस कदर शामिल हो जाते हैं कि इसकी खूबसूरती देख ही नहीं पाते। यहां निराशा और उदासी अगर घेर भी लो तो नया क्या है? कुछ भी नहीं। बस यहीं से जरूरत पड़ती है हमे प्रेरणा की। जो हमारी सोच को, हमारी जिंदगी को नयी दिशा दे। स्वामी विवेकानंद का जीवन पूरी दुनिया को प्रेरित करता है। उन्ही से जुड़ा एक प्रसंग याद आता है। कहीं पढ़ा था।

ये किस्सा उन दिनों का है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। धर्म और योग का ज्ञान दुनिया के सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुंचाने के अपने अभियान में मे काफी व्यस्त थे। यात्राओं और भाषणों का अपना काम खत्म करने बाद स्वामी जी अपने निवास स्थान पर आराम करने के लिए लौटे हुए थे। उस दौरान वे अमेरिका में ही थे। उन्हें अपने सारे काम स्वयं करने ही आदत थी। खाना भी वो खुद ही बनाते थे।

स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद

उस दिन भी उन्होंने खाना बनाया और खाना खाने की तैयारी कर रहे थे। उमकी नजर दूसरी तरफ पड़ी। वहां कुछ बच्चे उनके पास खड़े थे। काली वक्त में बच्चे अक्स ही उनके पास आजाते। उनका स्वाभाव बच्चों को पसंद था। देखने पर स्वामी जी ने महसूस किया कि बच्चे भूखें हैं। यह मालूम पड़ते ही स्वामी विवेकानंद जी ने अपना सारा भोजन बच्चों में बांट दिया। वहीं कुछ कदम की दूरी पर बैठी एक महिला सब देख रही थी। महिला ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा- “आपने अपनी सारी रोटियां तो इन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?”

स्वामी जी ने अपने जाने-पहचाने अंदाज में मुस्कुराते हुए कहा- माता! रोटी तो केवल पेट की भूख मिटाने वाली चीज है। अगर इस पेट न सही तो उनके पेट में ही सही। आखिर वे सब भगवान के अंश ही तो हैं। देने का आनंद, पाने के आनंद से बहुत बड़ा है।

सारांश- परोपकार से आत्मा आनंदित होती है।

2 COMMENTS

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