नहीं चला पाक का झूठ

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बेशक पाकिस्तान एक बार फिर फाइनेंशियल एशन टास्क फोर्स यानि एफएटीएफ की ओर से संभावित लैक लिस्ट वाली कार्रवाई से बच गया लेकिन ग्रे लिस्ट में पहले की तरह बरकरार है। इससे साफ हो जाता है कि आतंकी हाफिज सईद को 11 साल सजा दिलाने का निर्णय टास्क फोर्स की आंखों में धूल नहीं झोंक सका। इसका सुबूत है कि एक बार फिर से ग्रे लिस्ट में बरकरार रखते हुए चार महीने की मोहलत दी हुई है। चीन ने भी अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को सीधे तौर पर मदद नहीं की है, हालांकि बैक डोर से जरूर प्रभाव डाला गया वरना पाकिस्तान को बार-बार मोहलत मिल जाती है। जबकि यह शीशे की तरह साफ है कि टास्क फोर्स के निर्देशों की वो लगातार नाफ रमानी करता आ रहा है। मसूद अजहर भी अब कहीं लापता हो गया है और वांछित आतंकी दाऊद इब्राहिम के पाकिस्तान में रहने के ढेरों सुबूत भी झुठला दिए जाते हैं।

सीमापार से भारत में आतंकी घटनाओं में कहीं ना कहीं पाकिस्तान की संलिप्तता से सुबूत मिलते हैं। जरूरी है, भारतीय नेतृत्व को अगले चार महीनों में ऐसे सुबूतों के साथ टास्क फोर्स को विश्वास में लेना है, जिससे यह हर बार मोहलत दिए जाने का सिलसिला थम सके। पाकिस्तान जैसे देश जिसने आतंक को अपनी राज्य नीति का हिस्सा बना रखा है, इसी के तहत आतंकी नेटवर्क को फैलाने का काम बेरोक-टोक मजबूती से चला आ रहा है। पड़ोसी होने के नाते भारत तो आतंकवाद की चुनौतियों से जूझता रहता है लेकिन वैश्विक स्तर पर कहीं भी कोई आतंकी वारदात होती है तो उसके तार कहीं ना कहीं पाकिस्तान की सरजमीं से जुड़े पाए जाते हैं। इसलिए पाकिस्तान को आतंक की फैक्ट्री कहा जाना लाजिमी है।

जहां तक भारत का सवाल है तो खुद सेना ने माना है कि गुलाम कश्मीर में सैकड़ों आतंकवादियों के लॉचिंग पैड बरकरार हैं और पाकिस्तानी सेना की कोशिश अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सीज फायर का उल्लंघन करके भारतीय सीमा में घुसपैठ कराने की होती है। जबसे कश्मीर की वैधानिक स्थिति बदली है तबसे पाकिस्तान घुसपैठ कराने में कामयाब नहीं हो पाया है। इसीलिए राज्य के भीतर आतंकी घटनाएं लगभग ना के बराबर हुई हैं। जो थोड़े-बहुत मामले सामने आ भी रहे हैं वो आतंकी नेटवर्क के ओवरग्राउण्ड वर्कर्स हैं, जिनकी भूमिका पाई गई है। हालांकि उन्हें भी ठिकाने लगाया जा रहा है। बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद लगा था कि पाकिस्तान अपनी हरकत पर पुनर्विचार करेगा पर सीमापार आतंकवादियों के लॉचिंग पैड की खबरें उसके मंसूबे को बार-बार सतह पर जाहिर कर देती है।

इसके सुबूत को दुनिया के सामने लाने की जरूरत है ताकि आतंकवादियों को फंडिंग पर नजर रखने वाली एजेंसी भी पाकिस्तान को लैक लिस्ट में डालने के फैसले तक पहुंचे। साथ ही पाक के हमदर्द चीन की भी कोई कोशिश काम ना आये। बार-बार मिलती मोहलत से पाकिस्तान हठी भी हो गया है।चीन और तुर्की के अलावा संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी पाकिस्तान की जब-तब मदद कर देते हैंए इससे उसकी दुश्वारियां कम हो जाती हैं।

यही वजह है कि तमाम चेतावनियों को दरकिनार करते हुए पाकिस्तानी निजाम अपनी नीति पर अमल करता आ रहा हैए यह बात और है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी तरफ से अमन और भाईचारे का राग अलापा जाता है। भू राजनीतिक दृष्टि के बावजूद पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया रखता है। खासकर अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के लिए ट्रंप चीन से पाकिस्तान की निकटता के बावजूद जज्बाती तौर पर भले ही उसे लताड़ लगायें लेकिन आर्थिक तौर पर किसी ना किसी बहाने मदद की किस्त जारी करते रहते हैं। इसीलिए कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को अच्छी और ठोस पहल करने की जरूरत है।

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