नर हो या नारी, संतान हो बस दो हमारी

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स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एन.के. आहुजा जो लंबे समय तक देश की सेवा में समर्पित रहे हैं और भारतीय सेना में 1970 से लेकर 1993 तक अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण पल देश को समर्पित किये। इन्हें सैनिक तथा असैनिक दोनों ही सेवाओं के लिए विभिन्न मेडल और पुरस्कारों से नवाजा गया। वर्तमान में स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में कुलपति के पद को सुशोभित कर रहे हैं। देश के जाने-माने विज्ञान भवन में आयोजित भारतीय छात्र संसद के कार्यक्रम में उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण नारा दिया ”नर हो या नारी, संतान हो बस दो हमारी” इस नारे के सुनते ही वहां बैठे हजारों छात्रों और अतिथियों ने करतल ध्वनि से इसका समर्थन किया और मेरे जैसे पत्रकार के लिए यह जरूरी हो गया कि डॉ. आहुजा से विस्तार से बातचीत की जाये और उनके विचार ”प्रभात” के लाखों पाठकों तक सीधे पहुंचाये जायें। मेरी इस सोच को मूर्त रूप लेने में अधिक समय नहीं लगा योंकि अत्यंत सरल स्वभाव के डॉ. आहुजा ने मेरे इस प्रस्ताव को माना और क्रांतिधरा के साथसाथ लखनऊ, गाजियाबाद तथा उाराखंड से प्रकाशित 76 साल पुराने हिन्दी दैनिक ”प्रभात” को एक सीधी बातचीत के लिए तैयार हो गये और एक प्याली चाय की चुस्कियों के साथ कुछ मिनटों का समय दिया। प्रस्तुत है एक बेलाग बातचीत हमारे सीनियर रिपोर्टर संजय वर्मा के साथ।

आप सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति हैं बहुत व्यस्त होंगे तो इतना चिंतन का वक्त आपको कैसे मिल पाता है ?डॉ. आहुजा: जो भी आदमी यह कहता है कि उसे चिंतन तक का वक्त नहीं मिलता है तो मेरी समझ में वह बहुत सही नहीं है। योंकि जब भी व्यक्ति थोड़ा खाली होता है, या टी0वी0 पर कोई कार्यक्रम देख रहा होता है तो क्रियाशील अंतर्मन में थोट प्रोसिस चल रहा होता है और अब आपके ऊपर है आप निगेटिव सोचें या पोजिटिव। तो मेरी समझ में अच्छे विचार के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता, कभी भी आ सकता है। एक अन्य प्रश्न के जवाब में डॉ. आहुजा ने कहा कि यह नारा ”नर हो या नारी, संतान हो,बस दो हमारी”। आज के परिपेक्ष्य में मेरी समझ में सटीक नारा बन सकता है। क्योंकि हमारे प्यारे देश भारत जिसे सोने की चिडिय़ा भी कहा जाता था। वह आज अपने राष्ट्र के नागरिकों को दो वत की रोटी, हर हाथ को काम और सिर ढकने के लिए मकान, शायद इसलिए नहीं दे पा रहा है क्योंकि हमारी जनसंख्या एक विस्फोटक रूप धारण कर रही है और उस हिसाब से संसाधनों की कमी है।

आपके जेहन में यह नारा कैसे आया।
डॉ. आहुजा: मैं भी एक इंसान हूं। मुझे भी अपने साथी भारतवासियों के दुख-दर्द का पूरा अहसास है। इसको लेकर मैं द्रवित रहता था। लेकिन छात्र संसद में मुझे जो कनकलुडिंग रिमॉर्क देने थे। मैंने सोचा कि देश के युवाओं के सामने अगर यह प्रस्ताव रखा जाये कि हम आगे आने वाली पीढ़ी को जनसंख्या नियंत्रण का पाठ पढ़ाएं तो अति उत्तम होगा। इसी विचार में मैंने यह नारा दिया।

”हम दो, हमारे दो” से यह नारा कैसे अलग है?
डा.आहुजा: ”हम दो, हमारे दो” का नारा, बाल कवि बैरागी द्वारा दिया गया था, जिसे हमारी पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्रीमति इंदिरा गांधी ने एडोप्ट किया और आगे बढ़ाया। लेकिन विभिन्न कारणों से यह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सका या हम कहें कि उसका एक लंबा असर नहीं हुआ। लेकिन ”नर हो नारी, बस संतान दो हो हमारी” आज के परिपेक्ष्य में सबसे सटीक माना जा सकता है और विज्ञान भवन में बजी तालियां इसका जवाब हैं। हंसकर उन्होंने कहा कि इसी कारण संजय जी आप भी मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं। क्योंकि तालियों ने आपको आकर्षित किया। डॉ. एन.के. आहुजा ने जोर देकर कहा कि यह एक ऐसा फॉर्मूला है जिसमें सामाजिक बंधन व धार्मिक स्थिति प्रभावित नहीं होगी। साथ ही अपनी रीति-रिवाज के अनुसार पुरूष या महिला तलाक व धार्मिक कारणों के बाद भी इस नारे के माध्यम से केवल दो संतान पैदा कर पायेंगे।

क्या आप इसको अपने नाम से आगे बढ़ाना चाहेंगे?
डा आहुजा: जी! मुझे पूरा विश्वास है कि आज हमारे प्यारे भारत को इसकी अत्यंत आवश्यकता है और हमारी आगे आने वाली पीढ़ी तभी खुशहाल जीवन जीयेगी। जब जनसंख्या पर नियंत्रण हो। इसी कारण मैंने इसे कॉपी राइट करवा लिया है तथा ट्रेड मार्क के लिए भी जरूरी की जा चुकी है।

आगे क्या कार्यक्रम हैं?
डा आहुजा: हमारे जैसे फौजियों का सिर्फ एक ही कार्यक्रम है या हम कहें तो एक एक ही उद्वेश्य है राष्ट्रसेवा और राष्ट्र के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देना। जयहिन्द…

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