दुनिया के लिए बड़ा सिरदर्द बनेगा दो ताकतों का झगड़ा

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व्या‍पार को लेकर आजकल अमेरिका और चीन के बीच ऐसी ठन गई है कि यह मामला अगर शीघ्र नहीं सुलझा तो इसका बुरा असर सारी दुनिया की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ सकता है। जैसी मंदी का दौर 2008-09 में सारी दुनिया में छा गया था, वैसा या उससे भी बदतर दौर अगले एक-दो साल में देखा जा सकता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में खपनेवाले चीनी माल पर तटकर 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया है। अमेरिका चीन को जितना माल बेचता है, चीन उससे लगभग चार गुना अमेरिका को बेचता है। अमेरिका के शहरों और दूर-दराज के गांवों की दुकानें भी चीनी माल से पटी रहती हैं। चीन और अमेरिका के बीच लगभग साढ़े सात सौ बिलियन डॉलर का व्यापार है।

पहले चीन ने अमेरिकी सामान पर तटकर बढ़ाया तो अमेरिका ने भी नहले पर दहला मार दिया। दोनों देश एक-दूसरे के माल पर तटकर बढ़ाना यह कहकर उचित ठहरा रहे हैं कि उन्हें अपने-अपने उद्योग-धंधों की रक्षा करनी है। यदि तटकर बढ़ेगा तो वे चीज़े मंहगी हो जाएंगी और स्थानीय चीजों के मुकाबले कम खरीदी जाएंगी। यदि इस तटकर विवाद को विश्व व्यापार संगठन में ले जाया जाएगा तो वहां तो पहले से ही अमेरिका ने चीन को 19 मामलों में मात दे रखी है।

इस चीन-अमेरिकी तनाव के कारण मुंबई का शेयर बाजार हिलने लगा है लेकिन भारत को इससे फायदा भी हो सकता है। भारत का माल अमेरिका और चीन, दोनों जगह ज्यादा बिक सकता है, हालांकि भारत और अमेरिका के बीच भी व्यापारिक तनाव चल रहा है। चीन की अर्थ-व्यवस्था इस समय अधोगामी हो गई है। उसकी विकास-दर 2-3 प्रतिशत पर अटकी हुई है। उसका कर्ज उसके सकल उत्पाद (जीडीपी) से तीन गुना ज्यादा है।

चीन के मेगा स्टोर और मॉल खाली पड़े रहते हैं और हजारों फ्लैटों में कोई रहनेवाले दिखाई नहीं देते। यदि अमेरिका से व्यापारिक संबंध विच्छेद हो गए तो चीनी अर्थव्यवस्था को ढेर होते देर नहीं लगेगी। ट्रंप ने चीन को यह कहकर धमकाया है कि वह अगली अमेरिकी सरकार का इंतजार न करे। उसे जो समझौता करना है, अभी करे। अगली सरकार भी ट्रंप की ही होगी। तब चीन की मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं

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