दिखाई देने लगा प्रियंका गांधी का करिश्मा

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प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश में तूफानी अंदाज में एंट्री लेने के साथ ही यह सवाल शुरू हो गया कि रैली चाहे जितनी ही कामयाब हो मगर राज्य में संगठन कहां है और बिना संगठन के कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कैसे कामयाब होगी। दरअसल इस सवाल के जवाब में ही भारतीय राजनीति का तिलिस्म छिपा है! और इस तिलिस्म को समझने और समझाने से पहले हम भी एक सवाल पूछना चाहते हैं और वह सवाल यह है कि भारतीय राजनीति में सबसे समर्पित संगठन किसी पार्टी का है। निसंदेह सीपीआईएम का।

मगर क्या वह अपना कोई प्रधानमंत्री बना सकी है। दूसरा सवाल और कौन सी पार्टी है जो अपने संगठन पर सबसे ज्यादा भरोसा करती है। निश्चित ही रूप से भारतीय जनता पार्टी और इसके देश में दो प्रधानमंत्री बने भी हैं। मगर दोनों प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी क्या अपने व्यक्तिगत करिश्मे के बिना प्रधानमंत्री बस सकते थे। यहां यह सवाल किया जा सकता है कि भाजपा के पास विशाल संगठन है और क्या इसका फायदा वाजपेयी और मोदी को नहीं मिला। निश्चित ही मिला लेकिन अगर संगठन ही सब कुछ करवा सकता तो भाजपा में संगठन के सबसे बड़े आदमी लालकृष्ण आडवानी प्रधानमंत्री बने होते। मगर सच्चाई यह है कि उनका व्यक्तित्व करिश्माई न होने के कारण वे हमेशा प्रधानमंत्री की दौड़ में पिछड़ गए। यहां यह आशय बिल्कुल नहीं है कि प्रियंका प्रधानमंत्री की दौड़ में हैं। हां मगर यह सही है कि जैसा मीडिया मोदी और प्रियंका की तुलना कर रहा है उस लिहाज से प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री मोदी को अपने करिश्माई व्यक्तित्व से कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं। दरअसल भारतीय राजनीति का यही तिलिस्म है कि यहां सत्ता के दरवाजे तक सिद्धांत नीतियों और संगठन के सहारे पहुंचा तो जा सकता है मगर यह लौह द्वार खुलता करिश्म से ही है। अभी पहले हम जहां सीपीएम के मजबूत संगठन का जिक्र कर रहे थे तो वहां एक बात का जानबूझकर उल्लेख नहीं किया था। वह था उनके यहां भी करिश्मे का कमाल। सीपीएम को भी अपना प्रधानमंत्री बनाने का एक मौका मिला था। संयुक्त मोर्चा ज्योति वसु को प्रधानमंत्री बनाना चाहता था। क्यों? क्योंकि उनके पास एक चमत्कारिक व्यक्तित्व था।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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