अफगानिस्तान में शहीद हो गए, यह भारत के लिए बेहद दु:खद खबर है। अफगान सेनाओं और तालिबान के बीच स्पिन बल्दाक में चल रहे युद्ध के दौरान वे चित्र ले रहे थे। भारत के लिए गंभीर दु:ख की खबर यह भी है कि ताशकंद में चल रही मध्य एशिया संबंधी बैठक में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के नेता आपस में भिड़ गए और उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे दिए। उसका एक बुरा नतीजा यह भी हुआ कि आज इस्लामाबाद में दोनों देशों के बीच संवाद होना था, वह टल गया! दोनों देश बैठकर यह विचार करने वाले थे कि अफगानिस्तान में अमेरिकी वापसी से जो संकट पैदा हो रहा है, उसका मुकाबला कैसे किया जाए। यह सदभावनापूर्ण बैठक होती, उसके बदले दोनों सरकारों ने एक-दूसरे पर आरोपों का कूड़ा उंडेलना शुरु कर दिया है।
ताशकंद में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने आरोप लगाया कि हमलावर तालिबान की मदद करने में पाकिस्तान की फौज जीजान से लगी हुई है। पाकिस्तान के फौजी प्रवता ने कहा कि यदि सीमांत पर अफगान हवाई हमले होंगे तो पाक-फौज चुप नहीं बैठेगी। अशरफ गनी ने कहा है कि पाकिस्तान ने अफगान-सीमा में 10 हजार तालिबान घुसेड़ दिए हैं। उसने तालिबान पर पर्याप्त दबाव नहीं डाला, वरना वे बातचीत के जरिए इस संकट को हल कर सकते थे। इमरान खान ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान की कोशिश नहीं होती तो तालिबान बातचीत की मेज पर ही नहीं आते। पाकिस्तान के लगभग 70, 000 लोग इस संकट के कारण मारे गए हैं और 30 लाख से ज्यादा अफगान पाकिस्तान में आ बसे हैं।
यदि अफगानिस्तान में गृह-युद्ध हुआ तो पाकिस्तान एक बार फिर लाखों शरणार्थियों से भर जाएगा। पाक-अफगान नेताओं का यह वाग्युद्ध अब कौन शांत करवा सकता है? यह काम सबसे अच्छा अमेरिका कर सकता था लेकिन वह अपना पिंड छुड़ाने में लगा हुआ है। यदि भारत पहल करे तो वह पाकिस्तानी नेताओं को भी उनके आसन्न संकट से बचा सकता है और आगे जाकर कश्मीर पर भी पाकिस्तान को राजी कर सकता है। हमारे विदेश मंत्री ने ताशकंद बैठक में भारत का रटा-रटाया पुराना राग फिर से गा दिया लेकिन वह यों नहीं समझते कि यदि अफगानिस्तान में अराजकता फैल गई तो भारत में आतंकवाद बढ़ेगा और अफगानिस्तान में हमारा 3 बिलियन डॉलर का विनियोग व्यर्थ चला जाएगा।
डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)