हमारे संविधान का अनुच्छेद 21 देश के हर नागरिक को आजीविका का अधिकार प्रदान करता है। संविधान में लिखित इस स्पष्ट प्रावधान के बावजूद लाखों लोग इस बुनियादी अधिकार से वंचित हैं। उचित संरक्षण के अभाव में उनके अधिकारों का हनन होता रहता है। ऐसे ही लोगों के लिए दिल्ली सरकार ने हाल ही एक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रेहड़ी-पटरी वालों की आजीविका और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण कानून ‘रेहड़ी फेरी आजीविका संरक्षण व फेरी व्यवसाय नियमन अधिनियम, 2014’ को पूरे राज्य के अंदर लागू करने का एलान किया है। सरकार के इस फैसले से दिल्ली के तकरीबन पांच लाख रेहड़ी-पटरी वालों को फायदा होगा। इनको सरकार कानूनी दर्जा देगी। उन्हें लाइसेंस जारी करेगी। रेहड़ी-पटरी वालों के व्यापक हित और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बने इस केंद्रीय कानून को लागू रने वाला दिल्ली पहला राज्य होगा। पहली नजर में, रेहड़ी-पटरीवालों की जिंदगी संवारने के लिए उठा यह अच्छा कदम है, लेकिन सवाल वहीं जाकर अटक जाता है कि इसे अमल में किस तरह लाया जाता है।
सरकारें आम आदमी के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं घोषित तो करती हैं, लेकिन उन पर ढंग से अमल नहीं होता। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के सभी छोटे- बड़े नगरों में लाखों रेहड़ी-पटरी वाले सडक़ और फुटपाथ किनारे छोटी-मोटी वस्तुएं बेचकर अपनीआजीविका चलाते हैं। इनमें बहुत कम लोगों के पास लाइसेंस होता है। मुंबई जैसे महानगर में बमुश्किल 20 हजार लाइसेंस प्राप्त वेंडर हैं। दिल्ली की बात करें तो वहां सिर्फ 55 हजार रेहड़ी-पटरी वालों के पास लाइसेंस है। केजरीवाल सरकार के फैसले से दिल्ली में पांच लाख वेंडर लाभान्वित होंगे। उन्हें वेंडिंग के लिए कानूनी संरक्षण मिल जाएगा। रेहड़ी-पटरी वालों की मुख्य शिकायत है कि उन्हें आए दिन कोई भी अपना निशाना बना लेता है। ये खास तौर पर पुलिस और ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के आसान शिकार होते हैं। उनसे किसी तरह बच भी गए तो नगर निगम और महानगरपालिकाओं के कर्मचारियों की गिद्ध नजर से बचना लगभग नामुमकिन होता है। कानूनी दर्जा मिलने के बाद ये हालात बेहतर होने की उम्मीद कर सकते हैं।
रेहड़ी-पटरी वाले हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं। रोजमर्रा की बहुत सी जरूरी चीजें हैं जिनके बगैर आम शहरी आबादी नहीं रह सकती। ये सब उसे इन्हीं रेहड़ी-पटरी वालों से मिलती हैं। ये अपनी सूझबूझ से आम लोगों की जरूरतों को समझते हुए आवश्यक वस्तुएं उन तक पहुंचाते और इस तरह अपना व परिवार का पालन-पोषण करते हैं। साल 2010 में रेहड़ी-पटरी वालों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) जी के तहत वेंडरों को अपने व्यवसाय संचालन का मौलिक अधिकार है और कानून के जरिए इस अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। इस फैसले के चार साल बाद, यानी साल 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार इनकी आजीविका की सुरक्षा के लिए, ‘रेहड़ी फेरी आजीविका संरक्षण व फेरी व्यवसाय नियमन विधेयक , 2014’ लेकर आई और इसे पारित कर कानून बनाया।
इसमें ऐसे कई प्रावधान हैं जो रेहड़ी-पटरी वालों को संरक्षण प्रदान करते हैं। लेकिन अफसोस, इस कानून की अभी तलक किसी भी राज्य ने खबर नहीं ली। पांच साल से यह कानून अमल में आने के लिए बाट जोह रहा है। कानून यदि अमल में आता तो इसका फायदा देश के एक करोड़ से ज्यादा रेहड़ी-पटरीवालों को मिलता। ना सिर्फ उनकी कारोबारी मुश्किलें कम होतीं बल्कि पुलिसकर्मियों, ट्रैफिक पुलिसवालों और नगरीय प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के उत्पीडऩ और शोषण से भी उन्हें मुक्ति मिल जाती। उनकी सामाजिक सुरक्षा और आजीविका से जुड़ा एक अहम मसला हल हो जाता। इस सदंर्भ में देर से ही सही, पर दिल्ली सरकार ने जो पहल की है, उसकी अहमियत काफी बढ़ जाती है। इसे ठीक से अमल में लाया गया तो देश के तमाम बड़े शहरों को व्यवस्थित करने के लिहाज से एक अच्छी मिसाल कायम हो सकती है।
जाहिर खान
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)