ट्रस्ट की पहली बैठक

0
253

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहली बैठक में मंदिर निर्माण का खाका खींचने के साथ वे गिले-शिकवे भी दूर किए गए, जिसकी शुरुआत केन्द्र सरकार की ओर से गठित ट्रस्ट में कुछ नामों को लेकर हुई थी। पदाधिकारियों की पहली सूची में महंत नृत्यगोपाल दास का नाम नहीं था, इससे संत समाज खफा था। मंदिर आंदोलन में इनकी बड़ी भूमिका रही थी। विश्व हिन्दू परिषद के चंपत राय का भी नाम नदारद था। मंदिर का मॉडल या होगाए इसको लेकर भी काफी आशंकाएं थीं। बुधवार को दिल्ली में हुई बैठक में इन सारे सवालों के जवाब खोजे गए। महंत नृत्यगोपाल दास के अध्यक्ष और चंपत राय महासचिव चुन लिए गए। अयोध्या विवाद में चल रहे मुकदमे की राय ही पैरवी करते आ रहे थे।

मंदिर प्रारूप पर यदि महंत की बात मानें तो विहिप के मॉडल पर आधारित होने की संभावना ज्यादा है। हालांकि तस्वीर इस बारे में बैठक के बाद ही साफ होगी। पर संकेत यही है, इसीलिए कारसेवकपुरम में पूजित शिलापट्टों के इस्तेमाल की बात बताई गई है। जरूरत के हिसाब से मंदिर की भव्यता के लिए विस्तार से भी कोई गुरेज नहीं है। ट्रस्ट के पूरे प्रारूप पर नजर डालने से एक बात स्पष्ट है कि चेक एंड बैलेंस की नीति का पूरा याल रखा गया है। ट्रस्ट का स्थाई कार्यालय अयोध्या में खुलेगा। खाते में भी किसी एक की ना चले, इसके लिए चंपत राय, गोविंद देव गिरि और डॉ. अनिल कुमार मिश्र को साइनिंग अथारिटी बनाया गया है। भवन निर्माण समिति भी बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष सीनियर नौकरशाह नृपेन्द्र मिश्रा होंगे। सावधानी ही बरती गई कि केन्द्र की ओर से न्यास में मंदिर आंदोलन से जुड़े किसी भी शस को मनोनीत नहीं किया गया, लेकिन पहली बैठक में मनोनीत पदाधिकारियों के माध्यम से आंदोलन के खास चेहरों को पूरा सम्मान-स्थान दिया गया। मोदी सरकार को पता था कि उसकी तरफ से ऐसे नामों को आगे बढ़ाने पर सियासत गरमा जाती। सावधानी बरतने के बावजूद बुधवार की बैठक में महंत नृत्यगोपाल दास और चंपत राय के सर्वसम्मति से हुए चुनाव पर सियासत भी शुरू हो गई है। निशाने पर मोदी सरकार ही है। कर्नाटक के गुलबर्ग में एआईएमएम की बैठक में इसके सदर असदुद्दीन ओवैसी ने ट्रस्ट की बैठक में चुने गए विहिप से जुड़े लोगों को लेकर मोदी सरकार की असल मंशा पर सवाल उठा दिया।

पार्टी की बैठक में पार्टी को लेकर चर्चा नाममात्र की हुई। हेट स्पीच की जरूरत नुमाइश हुई ताकि ध्रुवीकरण की सियासत को रफतार दी जा सके। स्वाभाविक भी है, पार्टी को लगता है बिना किसी मशक्कत के अपने वजूद को मजबूत किया जा सकता है। हालांकि, इस लिहाज में कोई भी दल किसी से तनिक भी पीछे नहीं है। यही इस दौर के राजनीति की त्रासदी भी है। एनसीपी लीडर शरद पवार भी पीछे नहीं हैं, उन्होंने कहा है कि केन्द्र सरकार को अयोध्या में मस्जिद के लिए भी ट्रस्ट का गठन करना चाहिए। जबकि तथ्य यह है कि केन्द्र सरकार ने जो किया है वो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए केन्द्र तीन महीने में ट्रस्ट का गठन कर मार्ग प्रशस्त करे तथा मुस्लिमों के मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराए। अयोध्या में जमीन का मसला राज्य सकरार से जुड़ा हुआ है। मोदी सरकार को अयोध्या क्षेत्र में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन तजबीज कर ली है, अब उसे स्वीकारने की पहल मुस्लिम पक्ष को है। विरोधाभास यह है कि दूसरे पक्ष में कई मत हैं। फैसले के बाद से अब तक मुस्लिम नेताओं-उलेमाओं ने अलग-अलग राग अलापे हैं तो केन्द्र सरकार ने अपनी ओर से फैसले के तहत की है। अब इसमें मस्जिद के लिए भी ट्रस्ट बनाने की रट का या औचित्य, शरद पवार ही बेहतर समझते होंगे। बरहहाल, राम मंदिर निर्माण की टीम तैयार हो गयी है, अब काम आगे बढ़ेगा, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here