जिन लोगों के पास मिशन है, वे कभी बोरियत महसूस नहीं कर सकते

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पिछले कुछ अरसे से टीवी सीरियलों में तीन बातें प्रमुख रूप से मिलती रही हैं- धोखाधड़ी, झगड़ा और बदला। ये तीन बातें सदियों से इंसान को आकर्षित करती आई हैं। संचार माध्यमों में इन्हें ही बार-बार परोसा जाता है। लेकिन समय बीतने के साथ ही एक खलनायक खड़ा हो गया है। उसी खलनायक का नाम है बोरियत। पूरा विश्व आज बोरियत से बचने के उपाय खोजने में लगा है। रसोईघर से अचानक एक फरमान जारी होता है। आज शाम को एक परिचित के घर उठावना के कार्यक्रम में जाना है। तैयार रहना। पति उठावने में जाने के लिए अपनी बोरियत भूल जाता है। पति-पत्नी अपनी बोरियत एक- दूसरे पर ढोलते रहते हैं। जीवन इसी तरह चलता रहता है। आत्महत्या करने वाले का साक्षात्कार नहीं लिया जा सकता। यदि यह संभव होता तो आत्महत्या का रहस्य समझा जा सकता था। आधे-अधूरेपन के अभिशाप से थककर ही वह आत्महत्या में मुक्ति का मार्ग खोज लेता है।

इसमें वह जीवन से भागने का उपाय देखता है और मौत के आगोश में समा जाता है। जिस इंसान को अपने जीवन में कोई मिशन मिल जाता है, वह कभी भी आत्महत्या के बारे में सोच ही नहीं सकता। पूज्य रविशंकर महाराज को कभी बोरियत नहीं होगी। सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास बोरियत का वक्त ही नहीं था। जिस इंसान के पास कोई कला है, कारीगरी है, वह भी बोरियत का अनुभव नहीं करता। दुर्योधन को कभी बोरियत नहीं हुई। उसके विचार नकारात्मक थे। इसलिए उसके मस्तिष्क में बुरे विचार आंदोलित होते रहते थे। आखिर बोरियत के इस अभिशाप से बचने का कोई उपाय है? कला-साहित्य या संगीत से सम्बद्ध क्रियाशीलता मानव को अर्थपूर्ण बनाती है। भारतीय फिल्म जगत के श्रेष्ठतम सर्जक सत्यजीत रे यदि आज होते तो 2 मई को वे अपना सौवां जन्म दिन मनाते।

जापानी फिल्म निर्माता अकीरा कुरोसेवा ने सत्यजीत रे के बारे में कहा था- जीवन में जिसने सत्यजीत रे की फिल्म नहीं देखी, तो समझ लो, उसने आज तक दुनिया में सूर्य और चंद्रमा को नही देखा। उनका पूरा जीवन इन्हें बिना देखे ही गुजर गया।आपने कभी ध्यान दिया, मोरारी बापू घंटों तक कथा कहते हैं, फिर भी कभी उनको थकते हुए नहीं देखा। उनकी एक बैठक कई बार साढ़े तीन घंटों की होती है। जहां मिशन होता है, वहां थकान का नामो-निशान नहीं होता। वहां बोरियत भी नहीं होती। जहां मुस्कराहट होती है, वहां बोरियत टिक ही नहीं सकती। मेरा मानना है कि बापू बहुत लम्बा जीवन जिएंगे। जीवन के अंतिम क्षणों तक वे रामकथा करते रहेंगे। दूसरी ओर रामकथा सुनने वाले असंय लोग भी कभी थकने वाले नहीं हैं।

गुणवंत शाह
(पदम श्री से सम्मानित वरिष्ठ लेखक, साहित्यकार और विचारक हैं ये उनके निजी वचिार हैं)

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