धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्मशास्त्रों में माँ सरस्वती देवी की पूजा-अर्चना की विशेष महिमा है। बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वती देवी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस वर्ष 30 जनवरी, गुरुवार को बसन्त पंचमी का पर्व हर्ष, उमंग, उल्लास के साथ मनाया जाएगा। माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि ‘बसन्त पंचमी’ के रूप में मनायी जाती है, इसे ‘श्री पंचमी’ भी कहते हैं । माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि 29 जनवरी, बुधवार को दिन में 10 बजकर 46 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 30 जनवरी, गुरुवार को दिन में 1 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। भगवती सरस्वती को विद्या, बुद्धि ज्ञान-विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है। आज के दिन भगवान् श्रीगणेशजी, श्रीविष्णुजी एवं माँ भगवती सरस्वती जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति करते हैं। विद्वत् एवं विद्यार्थी वर्ग माँ सरस्वती जी की पूजा-अर्चना विशेष उमंग, उत्साह व हर्ष के साथ मनाते हैं।
पूजा की विधि- ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् माँ सरस्वती (बसन्त पंचमी) के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए आज का दिन खास है। उन्हें व्रत उपवास रखकर माता सरस्वती जी की पूर्ण आस्था श्रद्धा व विश्वास के साथ विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करके अपने ज्ञानार्जन में वृद्धि करना चाहिए। हिन्दू धर्म के मुताबिक समस्त धार्मिक व मांगलिक कृत्य भी आज विशेष तौर से सम्पन्न होते हैं। नव प्रतिष्ठान व व्यापार के प्रारम्भ हेतु आज का दिन सर्वोत्तम माना गया है। घर परिवार के अतिरिक्त मंदिरों व सार्वजनिक स्थलों पर माँ सरस्वती जी की मूर्ति स्थापित करके विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करने की धार्मिक परम्परा है। बसन्त पंचमी के दिन होलिका की स्थापना करके उनके गीतों का गायन भी किया जाता है। बसन्त पंचमी से मौसम में परिवर्तन के साथ ही ‘वसन्त ऋतु’ की शुरुआत हो जाती है।
धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। इस दिनव्रत-उपवास करके माँ सरस्वती जी को विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सुसज्जित तथा पीले रंग के पोशाक व आभूषणों से श्रृंगारकरके पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही पीले रंग के नैवेद्य, ऋतुफल एवं मेवे सहित केसरिया पीले रंग के मीठे चावल भी अर्पित किए जाते हैं। भगवती सरस्वती जी की अनुकम्पा प्राप्ति के लिए उनकी महिमा में सरस्वती जी के विविध स्तोत्र आदि का पठन व मंत्र आदि का जाप करने की परम्परा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के दिन ‘रति-काम महोत्सव’ भी मनाने की परम्परा है।
ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन
मो0 :- 09335414722
(लेखक हस्तरेखा विशेषज्ञ रत्न परामर्शदाता,फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद है)