चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर ब्रह्मा जी ने की थी सृष्टि की रचना

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दुनिया भले ही नया साल जनवरी से मनाती है लेकिन सनातन कालगणना में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (6 अप्रैल) से ही नववर्ष की शुरुआत मानी गई है। पुराण कहते हैं, इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। मतलब ये दिन मानव सभ्यता के अभ्युदय का दिन है। किसी अन्य नववर्ष से ज्यादा महत्वपूर्ण और मान्य। अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि पंचांग (हिन्दू कैलेंडर) में तो चैत्र महीना होली के अगले दिन यानी फाल्गुन पूर्णिमा के बाद से ही शुरू हो जाता है। जिसे चैत्र कृष्ण प्रतिपदा कहा जाता है तो नया साल 15 दिन बाद क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे बहुत ही ऊंचे दर्जे की सोच और मान्यता है, जो भारतीय दर्शन की महानता को दिखाती है।

जानिए नववर्ष से जुड़ी इस मान्यता की खास बातें

वास्तव में चैत्र मास होली के दूसरे ही दिन से शुरू हो जाता है, लेकिन वो समय कृष्ण पक्ष का होता है, मतलब पूर्णिमा से अमावस्या तक का, इन 15 दिनों में चंद्रमा लगातार घटता है और अंधेरा बढ़ता जाता है। सनातन धर्म “तमसो मा ज्योतिर्गमय” यानी अंधेरे से उजाले की ओर जाने की मान्यता है। इस कारण चैत्र मास लगने के बाद भी शुरू के 15 दिन (पूर्णिमा से अमावस्या तक ) छोड़ दिए जाते हैं, अमावस्या के बाद जब शुक्ल पक्ष लगता है तो शुक्ल प्रतिपदा से नया साल मनाया जाता है, जो अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देता है। अमावस्या के अगले दिन से शुक्ल पक्ष शुरू होता है, जिसमें हर दिन चंद्रमा बढ़ता है, उजाला बढ़ता है।

नया साल शुरू होती शक्ति की आराधना से

विक्रम संवत के साथ चैत्र नवरात्र भी शुरू हो रहे हैं। चैत्र नवरात्र शक्ति की साधना का समय है। नवें दिन भगवान राम का जन्मोत्सव और फिर पूर्णिमा पर हनुमान का अवतार। भगवान और भक्त दोनों इस महीने में जन्मे। एक मर्यादा की मूर्ति, दूसरे शक्ति और भक्ति के अवतार। कई मायनों में चैत्र महीना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारी व्रत-पर्व परंपरा इस तरह से बनाई गई है कि वो जीवन का दर्शन बताती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नया साल और नवरात्र का पहला दिन। नई शुरुआत कीजिए शक्ति के संचय से। जीवन में जब भी कोई नई चीज शुरू हो तो सबसे पहले जरूरत है, उसके लिए उतना सामर्थ्य जुटाने की।

श्रीराम और हनुमानजी का जन्मोत्सव

नवरात्र के बाद श्रीरामनवमी यानी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म उत्सव मनाया जाता है। शक्ति के साथ शील और अनुशासन की जरूरत होती है। शक्ति का संचय करके खुद के लिए अनुशासन तय कीजिए। उसके प्रति जागरुक रहिए। इसके बाद पूर्णिमा पर मनाया जाता है हनुमान जन्मोत्सव। हनुमान प्रतीक हैं शक्ति, शील, निष्ठा, आत्मविश्वास और भक्ति के। शक्ति, अनुशासन के बाद काम के प्रति निष्ठा, भक्ति और आत्मविश्वास जगाइए। अगर इन तीन चरणों से आप सफलता से गुजर गए तो कभी किसी काम में असफल नहीं होंगे।

कोशिश करें मोह का त्याग हो

इस चैत्र से अगर आप अपने लिए कोई रिजोल्यूशन चाहते हैं तो मोह का त्याग करने का संकल्प लें। किसी भी चीज पर अधिकार हो, लेकिन उसमें इतनी आसक्ति हो जाए कि उसके बिना काम ना चले, तो ये मोह है। श्रीरामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है च्च्मोह सकल व्याधिन कर मूला सारी बीमारियों की जड़ मोह ही है। मोह का अर्थ है जो मन पर हावी हो जाए। इसलिए अपने मन को मुक्त रखें। कोशिश करें किसी चीज में इतने आसक्त ना हों कि वो आपकी बीमारी का कारण बन जाए। प्रेम अपनी जगह है, लेकिन प्रेम की अधिकता मोह जगाती है। इसीलिए मोह से बचना चाहिए।

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