तोताराम आज फिर नहीं आया। चुनाव के बाद आत्मशुद्धि के लिए साधना तो कल हो चुकी है। अब पता नहीं और कौनसा नाटक ले आया होगा भला आदमी? हम आज लगातार दूसरे दिन तोताराम के घर गए। हमारी आशा के विपरीत घर पर ताला लगा हुआ था। समझ नहीं आया, कहां गए होंगे सब के सब। सोचा, जब निकल ही पड़े हैं तो क्यों न ‘स्मृतिवन’ तक एक लम्बी घुमाई ही कर लें। इसलिए कुचामन सिटी और नागौर जाने वाले हाइवे पर तेज कदमों से चलने लगे। अधिक दूर नहीं जाना पड़ा। कोई दो-तीन सौ कदम पर ही तोताराम, उसकी पत्नी मैना और पोता बंटी मिल गए। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ। आज के ज़माने में जब लोग बगल के मंदिर भी स्कूटर पर जाते हैं तो ये पदयात्री कहां के लिए निकल पड़े ? पूछा- क्या बात है, तोताराम ? अब तो चुनाव हो चुके।
अब तो जनसेवक तक सुस्ता रहे हैं, आत्मा की शांति के लिए साधना कर रहे हैं। परिणाम के बाद मंथन करेंगे और एक तू है जो वन-गमन कर रहा है। बोला- जब राम विलास पासवान और मायावती की पार्टी की एक भी सीट नहीं आई थी तब भी उन्होंने वन-गमन नहीं किया। 1984 में जब भाजपा मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी तब किसी ने वन-गमन नहीं किया था तो मुझे बिना चुनाव हारे ही वन-गमन की क्या ज़रूरत है ? हमने कहा- तो फिर घर चल। चाय के साथ कल के चुनाव परिणामों का अनुमान लगाएंगे। बोला- नहीं घर चलना संभव नहीं है। मैं नामांकन से पहले रोश शो के लिए निकला हूं। हमने पूछा-तीन आदमियों का कोई रोश शो होता है! नामांकन के लिए असली रोड श होता है मोदी जी जैसा। लाखों की भीड़, करोड़ों का खर्चा और घंटों में पूरी हुई 10 किलोमीटर की यात्रा।
ऊपर से हेलिकॉप्टर से पुष्प-वर्षा। और फिर अभी कौन से चुनाव हो रहे हैं जिसके लिए नामांकन भरने जा रहा है? बोला 2024 वाले चुनाव के लिए वाराणसी से नामांकन भरने जा रहा हूं। हमने कहा एक तो नए चुनाव में अभी पूरे पांच साल पड़े हैं। दूसरे मोदी जी के सामने तेरी औकात क्या है? तीसरे तू जिस दिशा में जा रहा है वह वाराणसी से ठीक विपरीत दिशा में है। बोला- तेरे तीनों प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार हैं- पहला मेरा रोड़ शो मोदी जी की तरह क्या मात्र 10 कि लोमीटर का होगा? मैं पूरे विश्व में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता हुआ धरती का चक्कर लगाकर चीन की तरफ से वाराणसी में प्रवेश करूंगा। इसलिए कोलंबस की तरह विपरीत दिशा में जा रहा हूं। दूसरे दूरी काफी है, इसलिए पांच साल का समय ज्यादा नहीं हैं।
तीसरे तब तक मोदी जी देश का पूर्ण विकास कर चुके होंगे, भारत को कांग्रेस-मुक्त बना चुके होंगे और उम्र में भी 75 के लपेटे में आने वाले होंगे तो अडवानी जी की तरह संन्यास का भी मन बना चुके होंगे तो उनसे मुकाबला करने की नौबत भी नहीं आएगी। इसलिए सभी दृष्टियों से मेरे लिए संभावनाएं बहुत प्रबल हैं। हमने कहा- लेकिन अभी तो चुनाव आयोग ने 2024 के चुनावों की तारीख ही घोषित नहीं की है। बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है? ट्रंप ने भी तो जनवरी 2017 में राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते ही 2020 के चुनावों के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी। वैसे भी वाराणसी पहुंचते-पहुंचते अप्रैल 2024 आ ही जाएगी। हमने कहा- तो फिर अडवानी जी भाई साहब को भी अपने साथ जा, रास्ते में पाकिस्तान में कटासराज मंदिर में अंतिम बार भगवान शिव के दर्शन भी कर लेंगे।
रमेश जोशी
(लेखक जाने-माने व्यंगकार हैं)