चुनावी डगर का दूरगामी असर

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बिहार चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने बिहार की अपनी सहयोगी जनता दल यू के नेता हरिवंश नारायण सिंह को दूसरी बार उपसभापति बनवाया। इसके जरिए बिहार के मतदाताओं को मैसेज दिया गया था। पर चुनाव के बाद अगर बिहार में समीकरण बदलता है तो उसका असर राज्यसभा पर भी दिखेगा। बिहार में भाजपा और जनता दल यू मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं। परंतु सीट बंटवारे को लेकर जिस किस्म का विवाद हुआ है, उससे दोनों पार्टियों के बीच बहुत गहरे अविश्वास का संकेत मिल रहा है। लोक जनशक्ति पार्टी के अलग होने, जदयू को हरवाने के लिए उमीदवार उतारने और भाजपा नेताओं के थोकभाव से लोजपा में जाने से जदयू के नेता नाराज हैं। भाजपा ने ऐसी राजनीति की है, जिससे वह जदयू के मुकाबले सात सीटें ज्यादा लडऩे में कामयाब हुई है। उसने पासा पलट दिया। जदयू की बड़े भाई वाली हैसियत खत्म कर दी है। तभी बिहार में इस बात का आम चर्चा है कि चुनाव के बाद भाजपा अपना मुयमंत्री बनवाने का दांव चलेगी और तब जदयू से तालमेल खत्म भी हो सकता है। पटना में कई किस्म की साजिश थ्योरी घूम रही है।

अगर बिहार में चुनाव के बाद समीकरण बदलता है। भाजपा और जदयू अलग-अलग होते हैं तो हरिवंश को राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। हालांकि पिछले कुछ समय से भाजपा से उनकी अच्छी करीबी बन गई है फिर भी इस्तीफे की राजनीतिक मजबूरी हो जाएगी। इस बात की संभावना इस वजह से भी है कि भाजपा के कई नेता अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले अन्ना डीएमके को कोई अहम जिमेदारी देने की बात कर रहे हैं। उसे केंद्र सरकार में शामिल करने की चर्चा है। अगर बिहार में समीकरण बदलता है तो अन्ना डीएमके के किसी नेता को राज्यसभा का उपसभापति बनाया जा सकता है। ध्यान रहे राज्यसभा में अन्ना डीएमके के नौ सांसद हैं। विपक्ष की राजनीति को देखते हुए भाजपा के लिए इनका बहुत महत्व है। वैसे बिहार में सरकार चला रही जनता दल यू के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों का इंतजार कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों से ही भाजपाजदयू संबंधों में स्पष्टता आएगी और लोजपा के प्रचार का जवाब मिलेगा।

बिहार भाजपा के नेता रोज चिराग पासवान को चेतावनी दे रहे हैं। लोजपा में शामिल होने वाले भाजपा के नेताओं को भी चेतावनी दी जा रही है। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल कई बार कह चुके कि चुनाव में चाहे जिसे जितनी सीटें मिलें पर मुयमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। इसके बावजूद भाजपा में टिकट से वंचित रह गए नेताओं के पाला बदल कर लोजपा में जाने और उम्मीदवार बनने का सिलसिला थम नहीं रहा है। संघ की पृष्ठभूमि वाले पार्टी के नेता राजेंद्र सिंह और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी ने लोजपा का दामन थाम लिया है और दोनों अपनी-अपनी सीटों से चुनाव लड़ेंगे। उन दोनों की सीटें जदयू के खाते में हैं। इस तरह की कहानी कई सीटों पर दोहराई जा रही है। लोक जनशक्ति पार्टी को अभी तक एनडीए से निकाला नहीं गया है। रैलियों में प्रधानमंत्री मंच से नीतीश के मुयमंत्री का ऐलान करेंगे और लोजपा की ओर से किए जा रहे प्रचार का जवाब देंगे। बताया जा रहा है कि अगले हफ्ते से प्रधानमंत्री की रैलियां शुरू होंगी और 20 दिन के अंदर वे 20 रैलियां करेंगे। जदयू नेता चाहते हैं कि हर रैली में नीतीश उनके साथ रहें और मंच से उनको मुयमंत्री बनाने का ऐलान हो।

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