प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूसरी बार जीतने के बाद पहले मालदीप और श्रीलंका के दौरे पर गए। इसके बाद 31-14 जून तो शंघाई सहयोग सम्मेलन, एससीओ की बैठक होनी है। उससे ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी काअपने दूसरे कार्यकाल में पहली विदेश यात्रा मालदीव और श्रीलंका की रखना कूटनीति के लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है। इस यात्रा से प्रधानमंत्री मोदी ने जहां एक तरफ नेबरहुड फस्र्ट का संदेश दिया वहीं साथ में अपनी इस यात्रा के जरिए चीन-पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से निशानासाधते हुए सामरिक दृष्टि के कड़े संदेश भी दिए। मालदीव में जहां मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे को उठाते हुए पाकिस्तान पर चोट किया वहीं श्रीलंका में अपने दौरे के दौरान आतंक वाद पर तो बात की ही साथ ही भारत-श्रीलंका के पुराने सांस्कृतिक रिश्ते की याददिलवाते हुए ये कहा कि भारत कभी भी अपने पुराने दोस्तों को नही भूलता। इनसब के बीच गौर करने वाली बात ये है कि अभी पिछले साल दिसंबर में जी ईस्टरके मौके पर श्रीलंका के चर्चों में सीरियल आतंकी हमले और ब्लास्ट हुए थे,जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे, उसमें भारत सबसे पहले श्रीलंका की मदद को आगे आया था। श्रीलंका की जांच एजेंसियों के साथ भारतीय जांच एजेंसी एनआईए मिल कर काम कर रही है और इस हमले के बाद भारत की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका जाने वाले पहले विदेशी मेहमान हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी में मालदीव और श्रीलंका की पहली विदेशयात्रा से एक सवाल जो उठता है वो ये की आखिर मालदीव और श्रीलंका ही क्यों? वो भी एससीओ समिट से ठीक पहले। शंघाई समिट में चीन, रूस और पाकिस्तान के साथ कजाकिस्तान, किर्गिस्तान भी इसके मेंबर हैं। यह भी सवाल है कि चीन को हमेशा साधने की चाहरखने वाले पीएम मोदी ने अपनी पहली यात्रा के चीन को क्यों नही चुना? चीन का तो मसूद पर बैन को लेकर हामी भरने का पीएम मोदी पर अहसान भी है वो भी आमचुनाव के दौरान जो बीजेपी के लिए वोट बटोरने के लिए तुरूप का पत्ता भी साबित हुआ था। अगर मोदीसरकार के पहले कार्यकाल पर गौर फरमाएं तो पूरा पांच साल विदेश नीति की उपलब्धियों से भरा रहा और अगर मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरेकार्यकाल के शपथ ग्रहण से ही जाए तो दूसरी पारी भी विदेश नीति की कूटनीतिक नीतियों से लबरेज नजऱ आएगा। मोदी सरकार के विदेशनीति की झलक शपथ ग्रहण के निमंत्रण में ही देखी जा सकती है। पिछली बार साल 2014 में सार्क देशों को बुला कर जहां शपथ ग्रहण में पीएम मोदी ने पाकिस्तान की भी मेज़बानी की थी वहीं इस बार सार्क देशों की जगह बिम्सटेक देशों को आमंत्रित कर बड़े ही कूटनीतिक तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया।
अब सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर पहली यात्रा मालदीव और श्रीलंका से ही क्यों? तो बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक देशों को शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण देकर भले ही कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान को तो अलग-थलग कर दिया, मगर इस स्ट्रेटेजी में मालदीव और अफगानिस्तान भी छूट गया। अब भारत अफगानिस्तान के मीठे रिश्ते तो जग जाहिर हैं। अफगानिस्तान के विकास में भारत का अहम रोल है। भारत अफगानिस्तान के विकास के अलग अलग प्रोजेक्ट चला रहा है और अकेले करीब तीन मिलियन डॉलर अफगानिस्तान में निवेश करनेवाला विश्व का पांचवां देश है। मगर भारत और मालदीव के बीच कुछ सालों से स्थिति तकरार की सी बनी हुई है। मालदीव की अगर बात करें तो तकरीबन पांच लाख की आबादी वाला मालदीव भले ही एशिया कासबसे छोटा देश हो जिसके पास दुनिया में सबसे निचला देश होने का रिकॉर्ड है। हिंद महासागर में बसा मालदीव का फैलाव भारत के लक्षद्वीप टापू तक है और जो श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिमीदिशा से करीब सात सौ किलोमीटर दूरी पर है।
बहुत ही छोटा देश मगर सामरिकदृष्टि से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण। जिस देश में चीन अपने पांव पसारने के लिए घात लगाए बैठा है और मुस्लिम बहुल देश होने के नाते पाकिस्तान हर वक्त इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की फि़राक में लगा रहता है। जिस देश में लगभग 30 हज़ार भारतीय भी बसते हैं। पिछले कुछ समय से चीन लगातार हिंद महासागर में अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। यहीं नही चीन भारत के पड़ोसीमुल्कों में अपने स्ट्रेटेजिक और डिफेंसिव स्टैब्लिशमेंट को भी बढ़ा रहा है, जिससे भारत की सीमा ओंपर अपनी पैनी नजऱ बनाये रख सके। श्रीलंका में चीन के कई डिफेंसिव राडार और सर्विलेंस स्टैब्लिशमेंट हैं तो श्रीलंका के समुद्री सीमाओं से लगे चीन की पनडुब्बियां भी तैरती रहती हैं। चीन के इस खेल में उसका भरपूर साथ दे रहा है पाकिस्तान। पहले ही चीन श्रीलंका के जरिए हिंद महासागर पर अपनेपांव पसार रहा था और अब चीन की नजऱ मालदीव के जरिए भारत के समुद्रीरास्तों पर रोड़ा अटकना है। भारत की ये मालदीव यात्रा चीन की इसी बदनीयती पर लगाम लगाने की एक कूटनीतिक पहल मानी जा रही है।
पिछले कुछ वर्षों से मालदीव और भारत की दूरियां धीरे-धीरे बढ़ रही थीं। खास कर साल 2012 के बाद रिश्तों की खटास और भी खुल कर सामने आईं जब मालदीव के पिछले शासन ने आतंक वाद को लेकर पाक स्तान का बचाव किया। दोनों देशों के बीच भडक़ती आग में घी का काम किया साल 2018 में मालदीव के जनरल इलेक्शन के दौरान भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी का वो बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि इस बार अगर मालदीव में सत्ता परिवर्तन नही होता है तो भारत को मालदीव पर आक्रमण कर देना चाहिए। हालांकि उस वक्त बीजेपी सहित भारत सरकार ने स्वामी के उस बयान से किनारा कर लिया था। पर आम चुनाव बाद तस्वीर पूरी तरह से बदल गई। प्रधानमंत्री मोदी मालदीव की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में गए। लेकिन सार्क को अप्रासंगिक करके पाकिस्तान को अलग थलग करने की जुगत में शपथ ग्रहण समारोह में कहीं नक हीं मालदीव भी छूट गया। पीएम मोदी की ये मालदीव यात्रा उसी कसक की भरपाई मानी जा रही है। यहीं नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान भारत- मालदीव रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिहाज़ से मालदीव को ढेर सारी सौगातें भी दीं।
अनिता चौधरी
(लेखिका स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)