चीन पर भारत कुछ बोलता क्यों नहीं ?

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग पिछले ही महीने भारत के दौरे पर आए थे और तमिलनाडु के ममल्लापुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका भव्य स्वागत किया था। दोनों नेता सात-आठ घंटे साथ रहे थे और हर मुद्दे पर खुल कर अनौपचारिक वार्ता की थी। इससे पहले पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी चीन के वुहान गए थे। सो, वुहान स्पिरिट और उसके बाद चेन्नई कनेक्ट की खूब चर्चा हुई है। इसे बड़ी कूटनीतिक घटना मान सकते हैं। शी जिनफिंग की यात्रा के एक महीने के अंदर ही प्रधानमंत्री मोदी की उनसे ब्राजील में ब्रिक्स की बैठक के दौरान दोबारा मुलाकात हुई और यह तय हो गया कि अगले साल प्रधानमंत्री मोदी तीसरी अनौपचारिक वार्ता के लिए चीन जाएंगे।

ऊपर से देखने पर ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के बीच क्या शानदार दोस्ती है या आपसी समझदारी है, जो दोनों देश एशिया की बड़ी शक्ति होने के बावजूद टकराव की बजाय दोस्ती का रास्ता चुन कर आगे बढ़ रहे हैं। पर असल में यह दोस्ती एकतरफा है। यह तभी तक है, जब तक भारत चीन की सारी ज्यादतियों को बरदाश्त कर रहा है। चीन आर्थिक रूप से ज्यादती कर रही है, कूटनीतिक रूप से कर रहा है, तकनीकी रूप से कर रहा है और सामरिक रूप से भी कर रहा है। पर हैरानी की बात है कि भारत इस पर कोई आपत्ति नहीं कर रहा है।

कहने को कहा जा सकता है कि भारत क्षेत्रीय समग्र सहयोगी संधि यानी आरसीईपी में शामिल नहीं हुआ और यह चीन को जवाब है। पर यह जवाब चीन को नहीं है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी। पूरे आसियान और एशिया-प्रशांत को है। दूसरे, इसका नुकसान भारत को भी उठाना पड़ेगा। सो, चीन के साथ संबंधों में आरसीईपी का जिक्र नहीं होना चाहिए। दोनों के दोपक्षीय संबंधों के आधार पर उनके आचरण की समीक्षा होनी चाहिए। खास कर चीन के आक्रामक आचरण और भारत के लगातार झुकते जाने की सोच के आधार पर।

भारत लगातार इस सचाई से मुंह छिपा रहा है कि चीन हमारे पूर्वोत्तर मे बेहद आक्रामक हो रहा है। वह हमारी सीमा में घुस आया है। अरुणाचल प्रदेश के भाजपा के सांसद तापिर गाओ ने एक बार फिर मंगलवार को संसद में दोहराया कि चीन के सैनिक भारत की सीमा में 50-60 किलोमीटर तक अंदर घुस आए हैं। यह बात उन्होंने चार महीने पहले भी कही थी। उनका वीडियो इंटरव्यू वायरल हुआ था। तब सरकार समर्थक लोगों ने इसे दबा दिया था पर अब यह बात उन्होंने संसद में कही है। तापिर गाओ ने सवाल पूछा है कि चीन भारत के केंद्रीय मंत्रियों के अरुणाचल प्रदेश जाने पर आपत्ति करता रहता है।

भारत औपचारिक या अनौपचारिक वार्ता में यह सवाल क्यों नहीं उठाता है कि आखिर चीन कैसे भारत की संप्रभुता को ऐसी चुनौती दे सकता है कि वह एक भारतीय नागरिक के अपनी ही सीमा में जाने-आने पर सवाल करे? भाजपा के अपने सांसद ने कहा है कि दूसरा डोकलाम हो सकता है। पिछले साल डोकलाम में चीन सैनिक घुस गए थे और पुल, सड़क आदि बनाने लगे थे। डोकलाम के बाद अब अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े इलाके में ऐसा किए जाने की खबर है। भारत की सरकार इस पर न सिर्फ चुप है, बल्कि इस खबर को दबाने में लगी है कि ऐसा कुछ नहीं है। चीन की इस आक्रामक सामरिक नीति का उसी आक्रामकता से जवाब देने की जरूरत है।

भाजपा के आक्रामक होकर जवाब देने का सिर्फ यह मतलब नहीं होता है कि वह युद्ध करे। अगर चीन भारत के नेताओं के या विदेशी मेहमानों के अरुणाचल जाने का विरोध करता है तो भारत को भी तिब्बत और ताईवान का मुद्दा उठाना चाहिए। अगर वह कश्मीर पर मानवाधिकार का मुद्दा उठाता है या उसे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाता है तो भारत को भी हांगकांग का मुद्दा उठाना चाहिए। यह नहीं हो सकता है कि चीन तो भारत में दलाई लामा के रहने का विरोध करे और भारत उससे यह सवाल नहीं पूछे कि आखिर उसने कैसे उल्फा के आतंकवादी सरगना परेश बरुआ को अपने यहां शरण दे रखी है?

भारत को बिना सख्त हुए या हमलावर हुए चीन के साथ जैसे को तैसा अंदाज में बात करनी चाहिए। या उसका जवाब देना चाहिए। भारत की चुप्पी को सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भारत की कमजोरी मान रही है। यह धारणा बन रही है कि वोट की राजनीति के लिए भारत सिर्फ पाकिस्तान के प्रति आक्रामक हो सकता है और चीन के सामने उसकी घिग्घी बंध जाती है।

चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की एंट्री रोकी है, वह कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया, उसके सैनिक सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं, उसके साथ भारत का कारोबार संतुलन बुरी तरह से बिगड़ा है, वह पड़ोसी देशों में भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहा है, वह खुलेआम पाकिस्तान को मदद करता है इसके बावजूद भारत का रवैया उसके प्रति ऐसा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अमेरिका ने चीन के रवैए को समझा और उसकी मंशा से परिचित है इसलिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई तरह की आर्थिक पाबंदियां लगाई हैं पर सबसे ज्यादा मुश्किल झेल रहा भारत कुछ नहीं कर रहा है।

अमेरिका ने चीन की कंपनी हुआवे पर पाबंदी लगा दी पर भारत ने उसे 5जी के ट्रायल की अनुमति दी है। अगर भारत ने जल्दी ही अपना नजरिया नहीं बदला तो मुश्किलें बढ़ेंगी। श्रीलंका में गोटाब्या राजपक्षे का राष्ट्रपति चुना जाना खतरे की घंटी है। इसका सीधा असर मालदीव पर होगा। नेपाल कैसा आचरण कर रहा है वह भी किसी से छिपा नहीं है। यह सब चीन के कारण है। भारत इस सच को समझते हुए चुप बना हुआ है।

शशांक राय
लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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