चीन के वीटों पर सवाल

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पाक पोषित मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने की कवायद एक बार फिर धरी की धरी रह गई। चीन ने टेक्निकल होल्ड पर अन्य देशों की सहमति को रखकर पाकिस्तान की मंशा को पूरा कर दिया, जिसको लेकर खासतौर पर भारत के भीतर जबरदस्त रोष है। यह लाजिमी इसलिए भी है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद खुद मसूद अजहर ने खुलेआम ऐलान किया था कि उसके इशारे पर सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया। उसकी स्वीकारोक्ति के बाद भी सख्त फैसले तक पहुंचने में रोड़े अटकाना चीन की मजबूरी भी दर्शाता है। जिस तरह चीन अपने यहां मुस्लिमों पर अत्याचार कर रहा है, उन्हें कैम्पों में रखकर यातनाएं दे रहा है। यही नहीं, मस्जिदों में नमाज पढ़ने तक की आजादी छीन ली गई है, ऐसे में, मसूद अजहर जैसे मास्टरमाइंड से उसे अपने यहां चल रही कार्रवाई में किसी तरह का व्यवधान ना आये, यह उसकी प्राथमिकता है।

क्योंकि पिछले दिनों अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की ओर से चीन में उड़गर समाज पर हो रहे उत्पीड़न संबंधी रिपोर्ट यूएन में पेश हुई थी और उस पर चर्चा होती लेकिन मसूद अजहर के मामले को वीटो करके अन्नाष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान बांटने में चीन कामयाब हो गया। इससे इतर भी एक सच है कि पाकिस्तान चीन का अब तक सबसे महंगा प्रोजेक्ट सीपेक चल रहा है जो आर्थिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है और यह भी सच है कि गुलाम कश्मीर में जो प्रोजेक्ट चल रहा है जो भारत की नजर में पाक अधिकृत कश्मीर है जिस पर भारत की तरफ से ऐतराज जताया जा चुका है। चीन नहीं चाहता कि पाकिस्तान की और फजीहत कराने में भारत को कामयाबी मिले।

वैसे भी अमेरिका से भारत की नजदीकी ड्रैगन को रास नहीं आ रही है। मसूद अजहर के मुद्दे पर देश के भीतर अब यह भी मांग उठ रही है कि अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने से बात नहीं बनेगी। बेहतर यह है कि बालाकोट पर भारत की तरफ से जिस तरह कार्रवाई हुई है ठीक उसी तरह मसूद अजहर पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। दूसरे देशों की तरफ देखते रहने मात्र से अपनी समस्या का समाधान नहीं होने वाला। शायद यही वजह है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी कहा है कि भारत अपने ढंग से इस मसले पर फैसले लेगा। इस सबके इतर हैरत करने वाली बात यह है कि विपक्ष चीन के रवैये पर हमलावर होने के बयाज मोदी सरकार पर विफर रहा है।

जिस तरह के बयान सामने आये है वे विपक्ष की चिंता कम अजहर को लेकर अपनी सियासत चमकाने की कवायद ज्यादा प्रतीत होते हैं। इस सबके बीच अहम ये है कि पाकिस्तान के साथ ही चीन को भी आतंकवाद के सवाल पर अन्तर्राष्ट्रीय बिरादगी में अलग-थलग करने की जरूरत है। जिस तरह अन्य देशों के बीच सहमति बन रही है और लोग एकजुट हो रहे है, उस स्थिति में बहुत दिनों तक अपनी सुविधा के लिए आतंकवाद या आतंकी की मदद नहीं की जा सकती। शुक्रवार को न्यूजीलैण्ड भी आतंकी हमवे का शिकार बना है। पश्चिम के देशों में आतंकवाद से काफी जन-धन की हानि हुई है। फ्रांस, कनाडा और आस्ट्रेलिया इसका शिकार रहे है। जहां तक अमेरिका की बात है तो उसकी चिंता अफगानिस्तान में तैनात अपने सैनिकों को वापस बुलाने की है।

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