ग्रहण से पहले 15 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करेगा सूर्य

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हिंदू कैलेंडर में सौर वर्ष के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। पुराणों में इस दिन को पर्व कहा गया है। सूर्य जिस भी राशि में प्रवेश करता है उसे उसी राशि की संक्रांति कहा जाता है। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र बताते हैं कि सूर्य एक साल में 12 राशियां बदलता है इसलिए सालभर में ये पर्व 12 बार मनाया जाता है। जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्रों में रहता है। संक्रांति पर्व पर दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। पं. मिश्रा का कहना है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार 14 जून की रात 12 बजे के बाद सूर्य वृष से मिथुन राशि में चला जाएगा। इसलिए इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है। मिथुन संक्रांति से तीसरे सौर महीने की शुरुआत होती है। इस सौर महीने में ही वर्षा ऋतु भी आ जाती है। मिथुन संक्रांति आषाढ़ महीने में आती है। इस महीने के देवता सूर्य हैं। इसलिए ये संक्रांति पर्व और भी खास हो जाता है। सूर्य पूजा और दान का महत्व स्कंद और सूर्य पुराण में आषाढ़ महीने में सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।

इस हिंदू महीने में मिथुन संक्रांति पर सुबह जल्दी उठकर भगवान सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही नीरोगी रहने के लिए विशेष पूजा भी की जाती है। सूर्य पूजा के समय लाल कपड़े पहनने चाहिए। पूजा सामग्री में लाल चंदन, लाल फूल और तांबे के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। पूजा के बाद मिथुन संक्रांति पर दान का संकल्प लिया जाता है। इस दिन खासतौर से कपड़े, अनाज और जल का दान किया जाता है। पूजा और दान के लिए पुण्य काल 14 जून की रात करीब 12 बजे के बाद सूर्य राशि बदलकर मिथुन में प्रवेश कर जाएगा। इसके बाद 15 जून को मिथुन राशि में ही सूर्योदय होगा। इस वजह से सूर्य पूजा और दान करने के लिए पुण्यकाल सुबह करीब 05.10 से 11:55 तक रहेगा।

इस मुहूर्त में की गई पूजा और दान से बहुत पुण्य मिलता है। संक्रांति का फल ज्योतिष ग्रंथों में तिथि, वार और नक्षत्रों के अनुसार हर महीने होने वाली सूर्य संक्रांति का शुभ-अशुभ फल बताया गया है। इस बार मिथुन संक्रांति का वाहन हाथी है। इस कारण विद्वान और शिक्षित लोगों के लिए ये संक्रांति शुभ फल देने वाली रहेगी। इसके प्रभाव से धन और समृद्धि भी बढ़ेगी। इसके अशुभ प्रभाव से लोग खांसी और बीमारियों के संक्रमण से परेशान हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ देशों के बीच तनाव और संघर्ष बढ़ सकता है। देश में कहीं ज्यादा तो कहीं कम बारिश होगी। मिथुन संक्रांति के साथ ही सूर्य पर राहु-केतु का प्रभाव होने से देश में प्रशासनिक व्यवस्थाएं गड़बड़ा सकती हैं।

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