गुरुपूजा का पावन पर्व

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गुरु पूर्णिमा पर होती है, गुरु की विशेष आराधना
गुरुकृपा से होता है जीवन आलोकित
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वस्थ स्थान प्राप्त है। गुरु का स्थान सर्वोपरि है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल की पूर्णिमा तिथि गुरु पूर्णिमा के रूप में जानी जाती है। गुरु पूर्णीमा का पर्व अति उमंग व हर्ष उल्लास के साथ मनाने की परम्परा चली आ रही है। गुरु पूर्णिमा का पर्व 16 जुलाई, मंगलवार को पड़ रहा है। इस बार अषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 15 जुलाई, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 1 बजकर 49 मिनट पर लग रही है, जो कि 16 जुलाई, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 16 जुलाई, मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दिन महर्षि वेद व्यास जी की भी पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। पूर्णिमा तिथि के दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान, ध्यान से निवृत्त होकर पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। अपनी दिनचर्या नियमित संचमित रखते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण लगने के कारण सूतक लगने से पूर्व गुरु पूर्णिमा का पर्व हर्ष व उमंग के साथ मनाया जाएगा।

ऐसे करें पूजा ? एक चौकी पर श्वेत वस्त्र पर पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 12-12 रेखाएं बनाकर व्यासपीठ बनाने का विधान है तथा दशों दिशाओं में अक्षत छोड़कर दिग बन्धन किया जाता है। ब्रह्मा, ब्रह्मा, परावर शक्ति, व्यास, शुकदेव, गोड़पाद, गोविन्द स्वामी और शंकराचार्य के नाममन्त्र से आवाहन करके पूजा करते हैं। अपने दीक्षा गुरु तथा माता-पिता, पितामह, भ्राता आदि की पूजा करने का विधान है। इस दिन अपने गुरु को भक्ति भाव श्रद्धा के साथ नवीन वस्त्र, नकद द्रव्य, ऋतुफल एवं मिष्ठान आदि भेंट स्वरूप अर्पित करके चरण स्पर्श करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि गुरु का आशीर्वाद ही जीवन में कल्याण करने वाला, सौभाग्य में अभिवृद्धि करने वाला माना गया है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि अपनी परम्परा के अनुसार अपने गुरु की श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ पूजा-अर्चना करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। गुरु की कृपा से समस्त कष्ट व अनिष्टों का निवारण होता है। जीवन में सुख समृद्धि खुशहाली आती है। पूर्णिमा तिथि के दिन ब्राह्मण जरूरतमन्दों को देव दर्शन के पश्चात यथाशक्ति दान-पुण्य कर लाभ अर्जित करना चाहिए।

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