गंगा भी हमारी मां है और गाय भी। खजाना लुटाने के बावजूद ना तो गंगा साफ हो पाई है और अब योगी सरकार चाहे जितनी भी कोशिश कर ले लेकिन सड़कों से तो गोवंश भी सही जगह पहुंचेन वाला नहीं। तो क्या मान लिया जाए कि हम मां की कद्र करना भूल गए हैं या फिर हम दिल से ना तो गंगा को मां मानते और ना ही गाय को? अगर मानते होते तो क्या गंगा मां के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते या फिर करने देते? अगर गाय हमारी माता है और हम उसे पूजते हैं तो फिर साख टके का सवाल यही है कि वो अब तक शहर, हर कस्बे और हर गली में सड़कों पर धक्के कैसे खाती रही? राजनीति को भूलकर अगर हम बात करें तो जो काम अब योगी सरकार कर रही थी, क्या वो जनता को नहीं करना चाहिए था? खासकर उन्हें जो अपने-आपको सही हिन्दू ठहराते आ रहे है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि तीन राज्यों में हार के विश्लेषण से शायद ये बात निकलकर सामने आई होगी कि गाय चुनाव भले ही ना जिता पाए लेकिन हरवा जरूर सकती है। खासकर यूपी में। जहां से होकर दिल्ली की की सत्ता का रास्ता खुलता है। योगी सरकार की तेजी बताती है कि कहीं ना कहीं इस समय गाय को लेकर कोई जोखिम उठाने की हालत में ना तो भाजपा है और ना ही योगी सरकार। लिहाजा गोशाला पर अरसे से बोलने वाले योगी जी सारे गोवंश को दस जनवरी से पहले गोशाला में देखना चाहते हैं। भाजपाई भी लगे हैं और प्रशासनिक व पुलिस अफसर भी इस समय गाय के पीछे दौड़ रहे हैं। लेकिन क्या ये दौड़ सफल होगी, ये अहम सवाल है?
पूरी यूपी में जितना गोशालाएं हैं उसमें इतनी जगह है जहां कि वो सारे गोवंश को वहां एकत्र कर ले? अगर जगह किसी तरह बन भी गई तो इस गोवंश को भरपेट राशन दिया कहां से जाएगा? सरकार खजाने के मुंह खोल करती है, लेकिन इस बात की गारंटी कौन लेगा कि जो छत्तीसगढ़ में गायों के साथ हुआ था वो यूपी में नहीं होगा। वहां पुरानी रमन सिंह सरकार के खास चहेते भाजपाई ने जो गोशाला खोली थी वहां हजारों गायों की जान भूख ने ले ली थी। ये यूपी में भी संभव है। आखिर कल्चर यहां भी वही है। कि पहले अपनी जेब देखों और फिर मां का भूखा पेट। ऐसी सोच जब तक रहेगी तब तक कैसे भी बंदोबस्त हो जाएं तब तक वो सुधार सामने नहीं आएगा जैसा होना चाहिए? शराब पर कर लगाकर पैसा जुटाया जा सकता है लेकिन वो पैसा सही जगह लगे इसे कौन तय करेगा? खेतों को जब तक आवारा पशु उजाड़ रहे हैं तब तक ये कैसे मान लिया जाए कि योगी सरकार का ये कदम किसानों का खुश कर देगा? हां इस बात की तारीफ जरूर होनी चाहिए कि चलो किसी ने तो गाय की सुध ली।
लेखक
डीपीएस पंवार