आज नेल्सन मंडेला का जन्मदिन है। यदि वे आज हमारे बीच होते तो 103 साल के होते। उन्हें 95 साल की आयु मिली। दुनिया के मैं किसी बड़े नेता को नहीं जानता हूं, जो 27 साल लगातार जेल में रहा हो और जिसे इतनी लंबी आयु मिली हो। तो सबसे पहले हमें यही जानना चाहिए कि इस लंबी आयु का रहस्य क्या हो सकता है ? नेल्सन मंडेल का मैं महात्मा गांधी की तरह दक्षिण अफ्रीका ही नहीं, संपूर्ण अफ्रीका का गांधी मानता हूं। वे द. अफ्रीका के उसी तरह राष्ट्रपिता हैं, जैसे गांधी भारत के हैं।
वे 76 साल की आयु में द. अफ्रीका के राष्ट्रपति बने और 81 साल की आयु में सेवा-निवृत्त हो गए। वे चाहते तो अगले डेढ़ दशक तक भी अपने पद पर बने रह सकते थे लेकिन सत्ता के प्रति अनासक्ति के भाव ने ही उन्हें जिंदा रखा। ऐसे कई बादशाह और प्रधानमंत्री मेरे मित्र रहे हैं, जिन्हें मैंने सत्ता से हटते ही या कुछ साल बाद स्वर्ग सिधारते हुए देखा है। मंडेला इसके अपवाद थे।
यह ठीक है कि मंडेला जब जवान थे, शार्पविल में हुए नरसंहार ने उन्हें प्रतिहिंसा के लिए प्रेरित किया लेकिन बाद में जेल जाने पर उन्होंने गांधी साहित्य का अध्ययन किया, जिसने उनकी जीवन-दृष्टि ही बदल दी। उन्होंने जेल में किए जानेवाले अत्याचारों के विरुद्ध अहिंसक प्रतिकार किए और काले लोगों के दमन के विरुद्ध शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन को प्रेरित किया। 1994 में द. अफ्रीका का चुनाव जीतने पर राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने बहुत ही अहिंसक और संतुलित नीति चलाई। उन्होंने कालों को गोरों के ख़िलाफ़ कभी भड़काया नहीं।
काले लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने कई कदम उठाए। विषमता की खाई, जो 10 गुनी गहरी थी, उसमें थोड़ी कमी आई लेकिन आज भी द. अफ्रीका की संपदा पर गोरों का वर्चस्व बना हुआ है। 90 प्रतिशत काले लोगों में से 2-3 प्रतिशत लोग मालदार जरुर हो गए हैं लेकिन मंडेला के सपनों का राष्ट्र तभी बनेगा जबकि दक्षिण अफ्रीका में समतामूलक समाज का निर्माण हो। गांधी के भारत में जैसे आज भी जातिभेद हुंकार भर रहा है, मंडेला के द. अफ्रीका में रंगभेद अपने सूक्ष्म रुपों में कायम है। गांधी और मंडेला की मंडली मिलकर दोनों महाद्वीपों, एशिया और अफ्रीका में, समतामूलक क्रांति ला सकें तो 21 वीं सदी इतिहास की सबसे सुंदर सदी बन सकती है।
डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)