भारत के लोक मानस में एक कहावत प्रचलित है‘गरीब की जोरू सबकी भौजाई’ यानी उसके साथ जो चाहे मजाक कर सकता है, छेड़छाड़ कर सकता है। इन दिनों भारत की स्थिति ऐसी ही होती जा रही है। भारत की स्थिति गरीब की भौजाई वाली हो गई है। जिसको जब मन चाहता है वह छेड़ जाता है और भारत को खून के घूंट पीकर रह जाना होता है। यह भारत की विदेश और सामरिक नीति की अब तक की सबसे बड़ी विफलता है। हालांकि इससे इतर देश में प्रचार इस बात का किया गया है कि पिछले छह साल में दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। दुनिया में क्या हुआ है उस पर विचार न करें तब भी हकीकत यह है कि इस महाद्वीप में ही भारत अलग-थलग हुआ है और छोटे से लेकर बड़े पड़ोसी तक के निशाने पर है। चीन से लेकर नेपाल और पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका तक भारत से दुश्मनी पाले बैठे हैं और भारत विश्व गुरू बनने का मुगालता पाले हुआ है। भारत की यह स्थिति चीन ने बनाई है। उसने भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए खुद भारत की जमीन में घुसपैठ की है तो पड़ोस के कई देशों को समर्थन देकर उन्हें भारत के खिलाफ भड़काया है।
उसने खुद पूर्वी लद्दाख में कम से कम तीन जगहों पर घुसपैठ की है और भारत की सीमा में घुस कर जमीन हथिया ली है, जिसे समारिक भाषा में यथास्थिति बदलना कहा जा रहा है। सेना के बड़े अधिकारी रहे लेफ्टिनेंट जनरल हरचरणजीत सिंह पनाग, सामरिक विशेषज्ञ अजय शुक्ला और ब्रह्मा चैलानी और लद्दाख के भाजपा सांसद चारों ने अपनी अपनी तरह से बताया है कि चीन ने यथास्थिति बदल दी है। यह कहा जा रहा है कि चीन ने भारत की 40 से 60 वर्ग किलोमीटर तक जमीन कब्जा कर ली है। उसने विवादित इलाकों से आगे बढ़ कर गैर विवादित इलाकों में कब्जा किया है। भारत ने बातचीत के नाम पर उसे जो समय दिया है उससे उसने अपनी स्थिति और मजबूत की है। वह स्थायी बंकर बना रहा है, सड़कें और हवाईअड्डे बना रहा है और सेना की मौजूदगी बढ़ा रहा है। माना जा रहा है कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले और राज्य को दो हिस्सों में बांट कर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद से चीन नाराज हुआ था। भारत के रक्षा और विदेश मंत्रालय में बैठे लोगों को इसका अंदाजा होना चाहिए था और उन्हें इसके लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए थी। पर ऐसा लग रहा है कि घोषणापत्र के राजनीतिक वादे को पूरा करने के लिए अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला गृह मंत्रालय ने कर लिया और रक्षा व विदेश मंत्रालय से विचार-विमर्श नहीं किया गया या पहले से तैयारी नहीं की गई।
लद्दाख की प्रशासनिक स्थिति बदलने से पहले वहां भारत को मजबूत सैन्य उपस्थिति बनानी चाहिए थी। इसके बाद भी अगर भारत ने फैसला कर लिया और चीन उससे नाराज होकर लद्दाख में यथास्थिति बदल रहा है तो भारत को भी चीन की तरह ही बांह मरोड़ने की कूटनीति और सामरिक नीति अपनानी चाहिए। यह जाना हुआ तथ्य है की चीन बातचीत की भाषा नहीं समझता है। सो, भारत को बैकफुट पर आने की बजाय आगे बढ़ कर चीन से दो टूक बात करनी चाहिए और अपनी जमीन छुड़ाने का जैसे भी हो वैसे प्रयास करना चाहिए। चीन के सामानों का बहिष्कार करने की बच्चों वाली अपील की बजाय चीन से निवेश पूरी तरह से बंद करने की घोषणा करनी चाहिए और हिम्मत हो तो चीन की कंपनियों को भारत छोड़ने के लिए कहना चाहिए। गौरतलब है कि अमेरिका ने इस तरह से बांह मरोड़ने की कूटनीति चीन के साथ शुरू कर दी है। भारत के सेना प्रमुख को पता है कि चीन की शह पर ही नेपाल जैसा छोटा देश भारत को आंख दिखा रहा है। उन्होंने चीन का नाम लिए बगैर यह बात सार्वजनिक रूप से कही।
परंतु उसके बाद नेपाल को लेकर भारत ने क्या किया? भारत की मौजूदा सरकार ने नेपाल में मधेशियों के अलग देश की मांग करने वाले संगठनों की अनदेख की है और नेपाली कांग्रेस पार्टी से भी दूरी बना ली। इसका नतीजा यह हुआ है कि मधेशी पार्टी और नेपाली कांग्रेस दोनों सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिल गए और भारत का विरोध शुरू कर दिया। ध्यान रहे देश की सभी पार्टियों वे मिल कर अपना नक्शा बदल लिया और भारत के तीन हिस्सों- कालापानी, लिपूलेख और लिम्प्याधुरा इलाके को नेपाल का हिस्सा बता दिया है। जबकि अंग्रेजों के समय हुई सुगौली संधि के समय से ये तीनों हिस्से भारत में हैं। सबको पता है कि चीन के इशारे पर नेपाल ऐसा कर रहा है पर भारत बयान जारी करके आलोचना करने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। ऊपर से नेपाल की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि उसके सिपाहियों ने भारत की सीमा के अंदर काम कर रहे किसानों के ऊपर फायरिंग की और एक किसान को मार डाला। दूसरे किसान को वे अपने साथ उठा कर ले गए, जिसे दो दिन के बाद सीमा पर छोड़ा।
अजीत दि्वेदी
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )