खटक: ऑनलाइन शिक्षा मिथक

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कुछ राग ऐसे होते हैं, जिन्हें बार-बार अलापना सही है। सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जिंदगी में शिक्षा की अहमियत, शिक्षा के लिए साक्षरता की अहमियत, ऐसे ही रागों में से एक है। लॉकडाउन में स्कूल बंद हुए और प्राथमिक कक्षाएं तब से लगभग बंद हैं। कहा जा रहा है कि ऑनलाइन शिक्षा क्लासरूम पढ़ाई की जगह पर कारगर हुई है। लेकिन सर्वे पर आधारित रिपोर्ट, ‘तालीम पर ताला’ में कुछ और पाया गया। अगस्त में हुए सर्वे में 1362 बच्चे और मां-बाप शामिल थे।

ग्रामीण क्षेत्र में आधे और शहरी में एक चौथाई घरों में एक भी स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं था। जहां फोन उपलब्ध भी है, कई बार वह मां या पिता के पास होता है। ऐसी में बच्चे की पढ़ाई के समय फ़ोन नहीं होता। जब घर में एक से ज्यादा पढ़ने वाले बच्चे हैं, लेकिन सभी बच्चों के बीच एक ही फोन है, वहां भी ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को दिक्कत आ रही है। ऐसी स्थिति में बड़े बच्चे को प्राथमिकता मिलती है, छोटा छूट जाता है। बच्ची से ज्यादा बच्चे द्वारा स्मार्टफोन उपयोग करने की संभावना रहती है।

चूंकि बच्चों के जीवन की चिंता है, कुछ गरीब अभिभावकों ने कर्ज लेकर बच्चे की पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन खरीदे हैं। स्मार्टफोन होना पहला पड़ाव है। इसके बाद परिवार के पास फोन रीचार्ज के लिए पर्याप्त पैसे होना भी जरूरी है। लॉकडाउन से इन परिवारों में आर्थिक दिक्कतें बढ़ी हैं और बीच-बीच में बच्चों की पढ़ाई इस वजह से भी छूट जाती है।

ऑनलाइन पढ़ने वाले लगभग दो-तिहाई (57% शहरी और 65% ग्रामीण) बच्चे ऐसे भी हैं जिनके लिए नेटवर्क बड़ी समस्या है। कहीं-कहीं तो उन्हें पहाड़ चढ़कर नेटवर्क मिला और कुछ समय बाद उन्हें पहाड़ से उतरना पड़ता है ताकि फोन चार्ज कर सकें। कहीं पर इन दिक्कतों के चलते, स्कूली बच्चे या बच्ची को किसी रिश्तेदार के घर रहने भेज दिया गया ताकि पढ़ाई में बाधा ना आए।

नियमित रूप से या फिर कभी-कभी पढ़ने वाले बच्चों में केवल 8-25% ऐसे थे जो ऑनलाइन क्लास या वीडियो से पढ़ रहे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में, उन परिवारों में जहां स्मार्टफोन उपलब्ध है, 43% उत्तरदाताओं ने कहा कि स्कूल से कुछ भी पढ़ाई की सामग्री नहीं भेजी जा रही इसलिए वे नियमित रूप से पढ़ाई नहीं कर पा रहे।

जब ऑनलाइन शिक्षा हो रही है, तब घर पर मदद की जरूरत ज्यादा है, लेकिन कई बच्चों के मां-बाप खास पढ़े-लिखे नहीं हैं। कई परिवार ऐसे थे, जहां बच्चे को या मां-बाप को स्मार्टफोन के सही उपयोग में दिक्कत आ रही थी। जिनके अभिभावक पढ़े-लिखे हैं भी, वे अभी बच्चों की मदद नहीं कर पा रहे क्योंकि उन्हें कमाई के लिए दिनभर बाहर रहना पड़ता है। उनके सामने सवाल है: पेट भरने के लिए कमाई करें या बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दें?

पढ़ाई के लिए अनुशासन अहम है। अनुशासन के लिए रुचि ज़रूरी है। जब ऑनलाइन शिक्षा चल रही हो, जहां आधा-अधूरा समझ में आ रहा हो, तब रुचि और अनुशासन, ख़ासकर छोटे बच्चों के लिए, कायम रखना बहुत कठिन हैं। बच्चों ने बताया कि जब ऑनलाइन क्लास हो रही है, तब भी उन्हें क्लासरूम की याद इसलिए आ रही है क्योंकि ऑनलाइन में वे सवाल नहीं पूछ पाते, संकोच कर जाते हैं। आसपास शोर होने की वजह से ध्यानपूर्वक पढ़ना मुश्किल है। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर कहीं वॉट्सएप ग्रुप में कुछ चित्र या फाइल भेज दी जाती हैं।

चित्र/फाइल में लिखावट स्पष्ट नहीं दिखती। कहीं वॉट्सएप ग्रुप में मैसेज आ जाता है कि कछुआ और खरगोश की कहानी पढ़ो। बस। काफ़ी बच्चों ने बताया कि वर्कशीट या होमवर्क के नाम पर वे सिर्फ़ भेजी गई लाइनें पुस्तक से कॉपी करते हैं। क्या लिखा है, कुछ खास समझ नहीं है।

पहली कक्षा में नामांकित बच्चे को होमवर्क दे दिया गया हालांकि वह एक भी दिन स्कूल नहीं गया और न ही उसे किसी ने लिखना सिखाया। शिक्षक ने मां से कहा कि छोटे बच्चे का होमवर्क बड़े बच्चे से कॉपी करवाकर जमा कर दें। मा-बाप को चिंता है कि बच्चों को फोन की लत न लग जाए।

कुछ बच्चे पढ़ाई के नाम पर फोन पर केवल कार्टून देखते रहते हैं या गेम खेलते हैं। अंततोगत्वा, बात यह है कि कम-से-कम प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर, सक्षम परिवारों में भी, ऑनलाइन शिक्षा क्लासरूम पढ़ाई के मुकाबले फीकी पड़ जाती है। जब बच्चे की पारिवारिक पृष्ठभूमि कमज़ोर हो, तब ऑनलाइन शिक्षा मिथक है।

रीतिका खेड़ा
(लेखिका अर्थशास्त्री हैं और दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं,ये उनके निजी विचार हैं)

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