क्या कोरोना अब खत्म हो रहा है ?

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भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों से लेकर अनेक स्वतंत्र विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि भारत में कोरोना वायरस का पीक आ गया और अब संक्रमितों की संख्या घटनी शुरू हो गई है। इसका मतलब है कि जल्दी ही संक्रमण का कर्व फ्लैट यानी समतल होना है। सरकार के नीति निर्धारकों ने ग्राफ सपाट होने की बात मई में ही कही थी पर उस समय ग्राफ सपाट होने की बजाय लगातार ऊपर जाता गया था। लेकिन अब संक्रमितों की संख्या सचमुच कम हो रही है और लगातार 12 दिन तक नए संक्रमितों की संख्या से ज्यादा मरीज ठीक हुए। तभी एक्टिव केसेज की संख्या भी दस लाख से नीचे आ गई है और लगातार कई दिन से दस लाख के नीचे है। तभी यह माना जा रहा है कि सितंबर के आखिरी हफ्ते में भारत में कोरोना का पीक आ गया है और अब केसेज धीरे धीरे कम हो रहे हैं।

आंकड़ों के हिसाब से यह बात सही दिख रही है। चूंकि पहले जब केसेज बढ़ रहे थे तब भी आंकड़े सरकार के होते थे और अब कम हो रहे हैं तब भी आंकड़े सरकारों के ही हैं। इसलिए कोई भी विश्लेषण इन्हीं आंकड़ों के आधार पर होगा। पिछले दो हफ्तों के आंकड़ों के आधार पर घटने का ट्रेंड साफ दिख रहा है। 16 अगस्त को देश में 93,199 नए संक्रमित मिले थे और एक अक्टूबर को 82,214 नए संक्रमित मिले। अक्टूबर के बाकी चार दिनों में संक्रमितों का रोजाना का औसत आंकड़ा और कम होकर 80 हजार से नीचे आ गया। देश में सबसे ज्यादा संक्रमित महाराष्ट्र में पिछले दो हफ्ते में संक्रमण की दर सबसे तेजी से घटी है। रविवार को महाराष्ट्र में 13 हजार से कुछ ज्यादा केसेज थे, जो दो हफ्ते पहले इससे लगभग दोगुने होते थे।

दक्षिण भारत के दो राज्यों कर्नाटक और केरल को छोड़ दें तो लगभग हर राज्य में संक्रमण की दर घटने लगी है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में संक्रमितों की रोजाना की औसत संख्या नौ-दस हजार के करीब पहुंच गई थी तो अब पांच से छह हजार की है। दिल्ली में तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि दूसरी लहर भी आ गई और उसका भी पीक आकर गुजर गया। उनके हिसाब से पहली लहर अगस्त में खत्म हो गई थी और दूसरी लहर सितंबर के अंत में खत्म हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मरीजों के ठीक होने की दर यानी रिकवरी रेट 84 फीसदी के करीब पहुंच गई है और मृत्यु दर घट कर 1.6 फीसदी रह गई है। इसका मतलब है कि कोरोना से संक्रमण का खतरा भी कम हो गया है और मरने का खतरा भी काफी कम हो गया है।

किसी भी महामारी में पीक आने के कई पैमाने होते हैं। अमेरिका में कई राज्यों में जिस पैमाने पर पीक का आकलन किया गया और जिसके बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स ने विस्तार से रिपोर्ट छापी उसके मुताबिक जब मामला पीक की ओर बढ़ रहा होता है तो हर दिन पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा मामले आते हैं। यह महामारी के अनियंत्रित होने का संकेत होता है। लेकिन जब नए संक्रमितों की संख्या में स्थिरता आ जाती है या हर दिन पिछले दिनों के मुकाबले कम केसेज आने लगते हैं तब माना जाता है कि पीक आ गया। भारत इस स्थिति में पहुंच गया है। हर दिन पिछले दिन के मुकाबले कम मामले आ रहे हैं। दूसरा पैमाना यह बनाया गया था कि रिकवरी रेट 75 फीसदी से ज्यादा हो जाए तो इसका मतलब है कि पीक आ गया। भारत में यह पैमाना गलत साबित हो चुका है क्योंकि रिकवरी रेट 75 फीसदी पहुंचने के बाद भी हर दिन केसेज बढ़ रहे थे। अब रिकवरी रेट 84 फीसदी है और केसेज कम हो रहे हैं।

अगर आंकड़ों से हेराफेरी नहीं हो रही है, त्योहारी सीजन में लोगों को सुरक्षा का झूठा भरोसा दिला कर उन्हें बाजार में ले जाने की योजना के तहत आंकड़े नहीं घटाए जा रहे हैं या बिहार विधानसभा चुनाव व कई राज्यों के उपचुनावों को सफल बनाने के लिए आंकड़ों से छेड़छाड़ नहीं हो रही है तब माना जा सकता है कि भारत में पीक आ गया। लेकिन पक्के तौर इस बारे में बिहार चुनाव के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। अगर बिहार चुनाव के बाद भी केसेज कम होने का सिलसिला जारी रहता है तब माना जाएगा कि भारत में पीक आकर गुजर गया।

सुशांत कुमार
(लेखक ‘द न्यूयॉर्क टाइस’ में नियमित स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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