क्या इस फैसले से बखेड़े नहीं होंगे?

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गुरुवार को मुबई उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इसके अलावा कोर्ट ने सरकार को सलाह देते हुए यह भी कहा कि आरक्षण को वर्तमान 16 प्रतिशत से घटाकर 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए। इससे पहले राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने शिक्षा में 12 जबकि नौकरियों में 13 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी। खैर, कोर्ट के सवाल का जवाब देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने परास्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 16 प्रतिशत तक आरक्षण के तहत प्रवेश पहले ही दे चुकी है। पिछले साल जुलाई और अगस्त में मराठा समुदाय ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग करते हुए मुंबई तक मार्च किया था। इस मार्च ने एक समय हिंसक मोड़ ले लिया था। इस मार्च का कोई चेहरा नहीं था बल्कि अलग-अलग वर्गों का झुंढ था जो अपने मांगों को लेकर आगे बढ़ रहा था। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की 30 प्रतिशत आबादी है। यह समुदाय लंबे समय से अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा था। यह आंदोलन औरंगाबाद से शुरु हुआ था और धीरे-धीरे इसकी आग पूरे महाराष्ट्र में फैल गई। हालांकि यह मांग 1980 से चलती आ रही है।

महाराष्ट्र विधानसभा ने राज्य में सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछली श्रेणी के तहत मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रस्ताव को एकतम से नवंबर में पारित कर दिया था। यह विधेयक मराठा समुदाय को लोक सेवाओं के पदों और शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश में आरक्षण देता है, जिन्हें समाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया गया हैष इससे पहले 2014 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने इसको मंजूरी दी थी पर मुंबई उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। दिसम्बर में बम्बई उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर महाराष्ट्र सरकरा के मराठा समुदाय के लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण देने के फैसले को चुनौती दी गयी थी। याचिकाकर्ता जयश्री पाटिल की तरफ से पेश होने वाले अधिवक्ता जी सदावर्ते ने दावा किया था कि राज्य सरकार का निर्णय उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है। अब इसे शीर्ष अदालत ने आरक्षण की अधिकतम सीमा तय कर रखी है। एससी एसटी के लिए 15 फीसद और 7.5 फीसद का आरक्षण तय है। इसके अलावा अन्य वर्गों के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया है जो 50 फीसद से अधिक का आरक्षण नहीं हो सकता।

हालांकि, कई राज्य 50 फीसद की सीमा को पार कर लिया है और शीर्ष अदालत में मुकदमे पार कर लिया है और शीर्ष अदालत में मुकदमे भी चल रहे हैं। उदाहण के तौर पर देखें तो तमिलनाड़ु में जाति-अधापित आरक्षण 69 फीसदी है जो यगां की 87 फीसद जनसंख्या पर यह लागू होती है। इस फैसले से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडण्वीस ने यह तो साबित कर दिया कि उन्हें राजनीति का नौसिखिया समझने की कोई भूल ना करे। उन्होंने इस मामले को बहुत ही गंभीर तरीके से डील किया। इससे पहले कोई भी मुख्यमंत्री इस मामले को लेकर निर्णय की तरफ नहीं बढ़ पाया था। बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को फडणवीस की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इस फैसले से विधानसभा चुनावों से भाजपा-शिवसेना गठबंधन को इसका फायदा मिल सकता है। अब तक माना जाता रहा है कि मराठा आरक्षण की मांग करने वाले लोग कांग्रेस-एनसीपी के साथ खड़े रहे लेकिन अब यह बदल सकता है। इस साल महाराष्ट्र में चुनाव होने है और मराठा समुदाय की 30 प्रतिशत आबादी का मत भाजपा-शिवसेना गठबंधन को जा सकता है। हलांकि इसका श्रेय लेने की भी शुरूआत हो गई है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा है कि मराठा आरक्षण का फैसला असल में कांग्रसे-एनसीपी ने लिया था। इस फैसले का अब देश के दूसरे राज्यों में भी असर देखने को मिल सकता है।

अंकित सिंह
लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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