हमारे देश के डाक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी और सरकारी कर्मचारी कितनी लगन से कोरोना-मरीजों की सेवा कर रहे हैं और समाजसेवियों के तो कहने ही क्या? उनकी निस्वार्थ समाजसेवा ही आज भारत को दुनिया की पुण्यभूमि बना रही है। लेकिन जिस बात को लेकर आज मुझे भयंकर धक्का लगा और हर इंसान को लगना चाहिए, वह यह कि पंजाब के दो-तीन परिवारों ने गज़ब की पत्थरदिली दिखाई है। उन्होंने बेटे, पति, भाई, पिता या पड़ौसी का फर्ज निभाने में भी कोताही की है। पंजाब के एक अधिकारी के मुताबिक कोरोना से मरनेवालों के घरवाले उनके शवों को दफनाने या जलाने भी नहीं आते। उनकी अंत्येष्टि सरकारी अफसरों को करनी पड़ती है। लगभग 50 प्रतिशत शवों की यही गति हुई है। प्रसिद्ध ग्रंथी हुजूरी रागी भाई निर्मलसिंह खालसा के गांव के लोगों ने उनकी अंत्येष्टि में अड़ंगा लगा दिया।
पटवारी अगर सख्ती से पेश नहीं आता तो वहां उनकी अंत्येष्टि ही नहीं होती। कोरोना-मरीजों के शवों को डाक्टर लोग काफी अच्छी तरह से लपेटकर सम्हलाते हैं। फिर भी लोग इतने डरे हुए क्यों रहते हैं, समझ में नहीं आता। पता नहीं, इसे डर कहें या कायरता? डर के मारे हमारे सारे नेता अपने घरों में छिपे पड़े हुए हैं तो इन बेचारे सामान्यजन को क्या कहा जाए ? भारत की केंद्र और राज्य सरकारें तो कोरोना से लड़ने की भरपूर कोशिश कर रही हैं और उन्होंने तालाबंदी को खोलने पर विचार करना भी शुरु कर दिया है लेकिन भारत के लिए यह बड़ी खुश खबर है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से कोरोना की दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरीन की मांग की है। मलेरिया की इस सफल दवाई की करोड़ों गोलियां भारत में उपलब्ध हैं।
कुछ दिन पहले भारत ने इसके निर्यात पर रोक लगाई थी लेकिन अब उसे हटा लिया है। बड़बोले ट्रंप ने भारत के इन्कार की संभावना पर बदला लेने की बात कहकर अपनी ही किरकिरी करवाई है। अच्छा है कि मोदी उसकी अनदेखी करें। न्यूयार्क और अन्य अमेरिकी शहरों में सैकड़ों भारतीय मूल के लोग भी कोरोनाग्रस्त हो गए हैं। हमारी मदद उनके भी काम आएगी। भारत ने श्रीलंका को 10 टन दवाई विशेष जहाज से भिजवाई है।
भारत ने जैसे एक करोड़ डॉलर ‘दक्षेस कोरोना आपात्कोश’ में दिए हैं, वैसे ही वह सभी पड़ौसी देशों को दवाइयां भिजवाने की भी पहल करे। उन देशों की भाषाओं में कोरोना से बचने की तरकीबें भी वहां के करोड़ों लोगों को इंटरनेट, रेडियो, टीवी और उनके खबरों के जरिए बताई जा सकती हैं। बड़े भाई का फर्ज निभाने का यह सही वक्त है।
वेद प्रकाश वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)