भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से ब्रह्महत्या जैसे पापों से मिलेगी मुक्ति कामदा एकादशी व्रत से मिलेगा अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान
हिन्दू सनातन धर्म में विशेष पर्व तिथियों की खास महिमा है। मास व तिथियों के संयोग होने पर ही पर्व मनाने की परम्परा है।। चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि की अपनी विशेष पहचान है। पुराणों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि कामदा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 11 अप्रैल, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर। 31 मिनट पर लगेगी जो कि 12 अप्रैल, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 12 अप्रैल, मंगलवार को यह व्रत रखा जाएगा। कामदा एकादशी की विशेष महत्ता है, जैसा कि तिथि के नाम से ज्ञात है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर सभी कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है, साथ ही व्रतकर्ता को कभी भी राक्षसयोनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।
व्रत का विधान-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् कामदा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करके लाभ उठाना चाहिए। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि भी होती है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता
पौराणिक कथा-कामदा एकादशी की कथा प्राचीन काल में भोगीपुर नामक नगर में पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गाना गा रहा था। उसे पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इसे कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा ने क्रोध में आकर ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्रों वर्ष तक राक्षस योनि में विचरण करता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी हुई। कुछ समय पश्चात् घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।
ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन