कांग्रेस की कलह

0
210

दलीय राजनीति में पेंच यह है कि बदलते वक्त और सरोकारों के चलते निष्ठा लगभग अप्रसांगिक हो गई है। इसलिए जिधर सत्ता या फिर सत्ता की उम्मीद, लोग बाग उसी तरफ चल पड़ते हैं। चुनावी मौसम में यह स्थिति आम हो जाती है। फिलहाल ताजा मामला कांग्रेस से जुड़ा है। हरियाणा में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने अपना नाता तोड़ लिया है। हालांकि उन्हें एक दिन पहले ही स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया गया था। पर नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की दखलंदाजी के चलते तंवर के समर्थकों को टिकट वितरण में पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया था। इससे नाराजगी बढऩा स्वाभाविक है और अब उनके पार्टी छोड़ देने के फैसले से राज्य में चुनावी लड़ाई काफी कठिन हो गई है।

यही हाल महाराष्ट्र की कांग्रेस का है। पूर्व पार्टी अध्यक्ष संजय निरूपम का भी तंवर जैसा दर्द और गिला है। टिकट वितरण में उनकी पैरवी का ध्यान नहीं रखा गया। उम्मीदवारों के चयन में उनकी राय नहीं ली गई। शिवसेना छोड़ बीते पन्द्रह वर्षों से कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने पार्टी के लिए मुखर वक्ता की छवि गढ़ ली थी। उसका पार्टी को लाभ और नुकसान दोनों हुआ। उन्होंने भी पार्टी छोडऩे की चेतावनी दी है। संयोग से अशोक तंवर और संजय निरूपम राहुल गांधी की पसंद बताए जाते हैं। सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद से राहुल के करीबियों की पूछ कम हो गई है। नवजोत सिंह सिद्धू कहां हैं, यह किसी को नहीं पता। आरोप है कि उम्रदराज नेताओं के इशारे पर पार्टी की सुनियोजित ढंग से लुटिया डुबोई जा रही है।

हालांकि आरोप मढऩे वालों ने भी पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है। पहले जो हाशिये पर चले गये थे, अब समय आते ही अपनी चला रहे हैं। यह गुटबाजी कांग्रेसके लिए आत्मघाती साबित हो रही है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी पार्टी की सांकेतिक मौजूदगी पर भी ग्रहण लगने लगा है। रायबरेली की सदर विधायक अदिति सिंह बागी हो गई हैं। पार्टी के निर्णय के विपरीत उन्होंने गांधी जयंती पर आयोजित विशेष सत्र में हिस्सा लिया था। इससे निश्चित तौर पर पार्टी की काफी किरकिरी हुई। उन्हें कारण बताओ नोटिस देने की बात सामने आई है लेकिन खुद अदिति सिंह ने ऐसी किसी नोटिस मिलने से इनकार किया है।

उस यूपी में कांग्रेस के भीतर कलह तेज हुई है जहां इक लौती संसदीय सीट रायबरेली से सोनिया गांधी प्रतिनिधि हैं। ऐसे समय में जब पार्टी की कमान उनके हाथ में है और प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथ में यूपी का पूरा प्रभार है तब ऐसा सियासी बखेड़ा पार्टी के लिए बेहद चिंताजनक होना चाहिए। अमेठी से राहुल गांधी 2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी से हार गए, हालांकि केरल के वायनाड ने उन्हें लोक सभा भेज दिया। बाकी सूबे से कांग्रेस के सफाये का सीधा मतलब है कि केंद्र में उसकी स्थिति कमोवेश ऐसे ही रहनी है। यह स्थिति लोक तंत्र के लिहाज से ठीक नहीं है। एक मजबूत विपक्ष होना चाहिए। कांग्रेस से तो भाजपा विरोधी दूसरी पार्टियां भी उम्मीद लगाए बैठी हैं। पर पार्टी खुद गुटबाजी के जिस अंधेरी सुरंग की तरफ बढ़ रही है, उससे फिलहाल तो कोई उम्मीद नहीं बंधती।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here