कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन

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दिल्ली का रामलीला मैदान पार्टियों के शक्ति प्रदर्शन का साक्षी बनता रहा है। शनिवार को इसी मैदान पर कांग्रेस ने भारत बचाओ रैली का आयोजन किया था। जिस तरह राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर हमले की कमान संभाली, उससे स्पष्ट हो गया है कि आगे से सियासी संग्राम और तीखा होने वाला है। सुस्त होती अर्थव्यवस्था और घटते रोजगार के अवसरों को रेखांकित करते हुए यह पहली कतार की तिकड़ी मोदी सरकार के अब तक के फैसलों को सदन से लेकर सडक़ तक घेरना चाहती है। हालांकि मौजूदा स्थिति यह है कि राज्यसभा में एनडीए के बहुमत में ना होने के बावजूद बीजेपी अपने एजेंडे के मुताबिक बिल पास कराती जा रही है। स्वाभाविक है, इससे कांग्रेस के भीतर गहरी निराशा है। निराशा के इस माहौल को बदलने की गरज से दिल्ली ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को बब्बर शेर और शेरनियां कहकर वो जोश पैदा करने की कोशिश की, जिससे सडक़ पर सवालों को लेकर लड़ा जा सके ।

इससे जनता के बीच सकारात्मक संदेश जा सकता है। भविष्य में पार्टी आंदोलन से आम लोग भी जुड़ सकते हैं। दरअसल, कांग्रेस को लेकर अभी लोग आश्वस्त नहीं हैं। भले ही अभी जांच चल रही होए लेकि न यह सच है कि कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आर्थिक सलाहकार के आरोपों में जमानत पर है। जबकि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर ऐसा कोई भी दाग नहीं है। बीते पांच वर्षों में मोदी सरकार बेदाग उभर कर सामने आई है। बेशक राफे ल खरीद प्रक्रिया को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश हुई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी क्लीन चिट देते हुए साफ कर दिया था कि सिर्फ धारणा के आधार पर जांच व मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। हालांकि राहुल गांधी अब भी यह आरोप लगाने से बाज नहीं आते कि अडानी समेत कुछ दर्जनभर उद्योगपतियों के लिए मोदी सरकार काम कर रही है।

दिक्कत यह है कि पार्टी, राजनीतिक लड़ाई में अब भी पीछे है और समय-समय पर रणनीतिक भूल भी करती चलती है। रैली में जिस तरह राहुल गांधी ने जान-बूझकर सावरकर का जिक्र किया। उसका सीधा असर महाराष्ट्र में शिवसेना नीत सरकार पर पड़ रहा है। शिवसेना ने भी साफ कर दिया है कि वह वीर सावरकर का अपमान नहीं सहेगी। एनसीपी ने इस मुद्दे पर गोलमोल रुख अख्तियार किया है। महाराष्ट्र की कांग्रेस इकाई चुप है, आखिर बोले भी तो क्या। ले-देकर शरद पवारा की सूझबूझ के चलते देश की आर्थिक राजधानी में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी बाहर है, पर राहुल गांधी के बयान से गठबंधन में असहजता की शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में पता चलेगा कि तनातनी कितना गुल खिलाएगी। फिलहाल तो भारत बचाओ रैली से पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित हुए हैं, अब यह उत्साह कितना आंदोलन में तब्दील होता है, इस पर निर्भर करेगी शक्ति प्रदर्शन की सार्थकता।

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