कांग्रेस अपना एजेंडा क्यों नहीं बनाती?

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यह लाख टके का सवाल है कि आखिर कांग्रेस पार्टी अपना एजेंडा क्यों नहीं बना रही है? भाजपा के एजेंडे पर चलने और उसकी सरकारों के एजेंडे पर पक्ष या विपक्ष में प्रतिक्रिया देने की बजाय वह अपना राजनीतिक मसौदा क्यों नहीं पेश कर रही है? जिस तरह पिछले 70 साल से भारतीय जनसंघ और भाजपा ने अपना कोर मुद्दा तय किया था उस तरह से कांग्रेस के पास क्या कोई कोर मुद्दा है, जिस पर उसे अगले दस, बीस या पचास साल राजनीति करनी है? हर चुनाव में लोक लुभावन घोषणाओं का पुलिंदा बनाना ही घोषणापत्र नहीं होता है। पार्टियों को अपने सिद्धांत, अपनी नीतियों और अपने कोर एजेंडे का मसौदा तैयार करके उसे जनता के बीच ले जाना होता है, जो कांग्रेस बरसों से नहीं कर रही है।

अब भी वह भाजपा और उसकी सरकार के एजेंडे पर प्रतिक्रिया ही दे रही है। उसके नेताओं ने संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन किया। पार्टी के जिन नेताओं ने इसका समर्थन नहीं किया, उनमें से भी ज्यादातर का विरोध इस बात को लेकर था कि सरकार का फैसला करने का तरीका गलत था। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक के फैसले को अवैध किया तो कांग्रेस उसके साथ हो गई। ध्यान रहे तीन तलाक के मसले पर वह सिर्फ केंद्र सरकार की ओर से इसे अपराध बनाने के लिए लाए गए बिल का विरोध कर रही है। ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में जनसंख्या नियंत्रण, पर्यावरण सुरक्षा और जल जीवन मिशन का ऐलान किया तो कांग्रेस के नेता उछल कर इसका समर्थन करने लगे।

अगर कांग्रेस को लग रहा था कि अनुच्छेद 370 अब घिस गया है और उसमें बदलाव होना चाहिए और यह देश की लोकप्रिय धारणा है तो उसने पहले क्यों नहीं इस पर अपनी लाइन तय की? जब कांग्रेस नेता एक साथ तीन तलाक बोले जाने को गलत मानते थे तो क्यों नहीं पहले ही खुल कर इसका ऐलान किया था? अगर कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि जल जीवन मिशन और जनसंख्या नियंत्रण प्राथमिकता होनी चाहिए तो क्यों नहीं पार्टी ने इसे अपना राजनीतिक मिशन बनाया और खुल कर इसका ऐलान किया? यह राजनीतिक नासमझी है, जो कांग्रेस ने देश की ज्वलंत समस्याओं को नहीं समझा और न देश में चल रहे लोकप्रिय विमर्श को समझा। और जब भाजपा ने इसे समझ कर इस पर अमल शुरू कर दिया तो कांग्रेस के नेता उसके पीछे हो लिए।

कांग्रेस को समझना चाहिए कि परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से और आंशिक या पूर्ण रूप से वह सरकार के जिन फैसलों का समर्थन कर रही है वह भाजपा का 70 सालों से चला आ रहा एजेंडा है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, समान नागरिक संहिता बहाल करना और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण भाजपा का दशकों पुराना एजेंडा है, जिस पर उसकी सरकार अब अमल कर रही है। क्या कांग्रेस का कोई नेता बता सकता है कि उसके पास ऐसा कौन सा एजेंडा है, जिसे उसने लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा बनाया है, लोगो के मानस में बैठाया हो और कहा हो कि उसकी सरकार बनेगी तो वह उस पर अमल करेगी?

कांग्रेस ने अपने पिछले घोषणापत्र में कहा कि उसकी सरकार बनी तो वह गरीबों के खाते में हर साल 72 हजार रुपए भेजेगी। केंद्र में उसकी सरकार नहीं बनी पर पांच राज्यों में उसकी सरकार है तो वह क्यों नहीं उन राज्यों में इस योजना को लागू कर रही है? अगर उसे इस बात पर यकीन है कि इससे गरीबी दूर होगी तो वह इस प्रतिबद्धता को क्यों नहीं पूरा कर रही है? नरेंद्र मोदी की देखादेखी राहुल गांधी चुनावों के समय खूब मंदिरों में गए। कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी कर आए। पर चुनाव के बाद क्या वे कभी मंदिर जाते या किसी पूजा-पाठ में हिस्सा लेते दिखे हैं? अगर पूजा उनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा नहीं है तो चुनाव के समय भी इसका दिखावा नहीं करना चाहिए। और अगर वे सचमुच शिव भक्त हैं तो वह चुनाव के बाद भी दिखना चाहिए।

कांग्रेस अगर वापसी करना चाहती है तो सबसे पहले उसे लोगों की भावनाओं को समझना होगा, देश के ज्वलंत मुद्दों को समझना होगा, देश में चल रहे लोकप्रिय विमर्श के बारे में जानना होगा और उस आधार पर अपना एजेंडा तय करके लोगों के सामने पेश करना होगा। चुनाव के समय नहीं, बल्कि अभी लोगों के सामने अपना एजेंडा पेश करना होगा और अगले पांच साल लोगों को उस पर जागरूक करना होगा। राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं है, यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, इसे समझे बगैर राजनीति संभव नहीं है।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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