कसूर क्या था रतनलाल का ?

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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर दिल्ली में भारी उपद्रव किया जा रहा है। उपद्रवी बड़ी बेरहमी के साथ आम लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोगों के घरों पर पत्थर फेंके गए, आग लगाई गई। यहां तक कि पेट्रोल पंप को भी आग के हवाले कर दिया गया। विरोध के नाम पर ये लोग इतने आक्रोशित हो गए हैं कि इन्हें किसी की जान लेने में भी गुरेज नहीं हो रहा है। पांच लोगों की जान चली गई। उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग में हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की जान चली गई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर विरोध प्रदर्शन के नाम पर उपद्रवियों की हिंसा को जायज कैसे ठहराया जा सकता है? सीएए का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि वे भारतीय हैं। उनका आरोप है कि सीएए कानून के जरिए उनकी नागरिकता छीनने की तैयारी है। जबकि भारत सरकार सौ दफे कह चुकी है कि सीएए नागरिकता छिनने नहीं देने का कानून है।

उपद्रवियों के बीच भ्रम है कि देशभर में एनआरसी लाया जाएगा। जबकि खुद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह साफ कर चुके हैं कि फिलहाल एनआरसी की कोई बात नहीं हुई है। इसको लेकर कैबिनेट की कोई बैठक तक नहीं हुई है। इन सारी बातों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि उपद्रव की भेंट चढ़े कॉन्स्टेबल रतन लाल की मौत का जिम्मेदार कौन है। आखिर वह तो भारत के नागरिक थे। वह तो अपनी सेवा दे रहे थे। ऐसे में भला तथाकथित तौर पर अपनी नागरिकता बचाने की लड़ाई लडऩे वालों ने कैसे उनकी जान ले ली। हमारा संविधान सरकार के द्वारा बनाए गए किसी भी कानून या फैसले के प्रति विरोध जताने का अधिकार देता है। लेकिन विरोध के नाम पर किसी को नुकसान पहुंचाने की इजाजत कतई नहीं है। इस देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले महात्मा गांधी पूरे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंसा को हमेशा रोकने की कोशिश करते रहे।

वे किसी भी सूरत में हिंसा का समर्थन करने को तैयार नहीं थे। साल 1922 में जब उनके द्वारा छेड़ा गया असहयोग आंदोलन अंग्रेजों पर भारी पड़ रहा था तब उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक जगह पर आंदोलनकारियों ने पुलिस वालों के साथ हिंसा की थी, जिसके बाद गांधी ने आंदोलन को अचानक से बंद कर दिया था। उनका यह फैसला दर्शाता है कि वह स्वतंत्रता जैसी बड़ी सफलता के लिए भी हिंसा की एक घटना को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। गांधी से प्रेरित होकर हम विरोध तो करना सीख गए हैं, लेकिन उसके साथ अहिंसा के पाठ को अपनाना शायद भूल गए हैं। नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में रविवार को शुरू हुए हिंसक प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब इसकी चिंगारी मानों आसपास के अन्य इलाकों में भी पहुंच गई। आज सीलमपुर में गोलियां चलीं। भजनपुरा में आगजनी की खबरें हैं। कई बाइक्स को फूंक दिया गया।

हिंसा के दौरान का एक विडियो भी आया है। इसमें शख्स ने पुलिसवाले के सामने गोलियां चलाई हैं। विडियो में दिख रहा है कि शख्स पुलिसवाले के सामने बंदूक लेकर बढ़ता है। पुलिसवाले के रोकने के बावजूद वह वहां गोलियां चला देता है। खबरों के मुताबिक, उसने 8 गोलियां चलाई थीं। गोली चालनेवाले शख्स को सीएए के खिलाफ धरने पर बैठा हुआ बताया जा रहा है। प्रदर्शन के चलते हिंसा अब आसपास के इलाकों में भी फैल चुकी है। भजनपुरा के पास चांदबाग में सीएए के खिलाफ धरनास्थल पर पत्थरबाजी हो रही है। पांच लोग जान गंवा बैठे। अनगिनत घायल हैं,ये कैसा विरोध? हैरानी की बात है कि राज्य के मुख्यमंत्री केवल सोशल मीडिया पर बयान देकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जा रहे हैं।

हेड कॉन्स्टेबल की मौत पर सीएम केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा है, पुलिस हेड कॉन्स्टेबल की मौत बेहद दु:खदायी है। वह भी हम सब में से एक थे। कृपया हिंसा त्याग दीजिए। इस से किसी का फ़ायदा नहीं। शांति से ही सभी समस्याओं का हल निकलेगा। इसके अलावा सीएम केजरीवाल की कोई भी सक्रियता जमीन पर नहीं दिख रही है। दिल्ली में पिछले 77 दिनों से विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है, लेकिन सीएम केजरीवाल ने एक बार भी उन्हें शांत कराने की कोई कोशिश नहीं की। वह हमेशा केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय पर बात टालते हुए देखे जा रहे हैं। चुनाव से पहले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया मीडिया में बयान देते हैं कि वह प्रदर्शकारियों के साथ हैं। लेकिन जब उन्हें लगता है कि चुनाव में उन्हें इसका नुकसान होगा तो वह अपने बयान को बदल लेते हैं।

अभिषेक कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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