कश्मीरः धारा 35 ए पर बहस

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आजकल भाजपा और मोदी सरकार के प्रभावशाली प्रवक्ता बने हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कश्मीर पर फिर एक बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा है कि धारा 35 ए खत्म की जानी चाहिए और यह भारतीय संविधान में ‘चुपके से’ घुसाई गई है। उन्होंने इसे एतिहासिक भूल कहा है। उनके बयान का लगभग हर बड़े कश्मीरी नेता ने विरोध किया है और यहां तक कहा है कि यदि धारा 35 ए हटा दी गई तो कश्मीर अपने आप एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा। वह भारत का हिस्सा नहीं रहेगा।

यहां पहले हम जानें की धारा 35 ए है क्या? यह वह धारा है, जिसे राष्ट्रपति के एक आदेश से 1954 में भारत के संविधान में जोड़ा गया था। इसे धारा 370 के तहत ही बाद में विधिवत संविधान का हिस्सा बनाया गया था। इस धारा के चार प्रमुख आयाम हैं। पहला, यह तय करती है कि कश्मीर के स्थायी या असली निवासी कौन हैं? यह कश्मीरी और गैर-कश्मीरी में फर्क बताती है। दूसरा, यह स्थायी निवासियों को कश्मीर में संपत्ति खरीदने का अधिकार देती है और गैर-कश्मीरियों को उससे वंचित करती है। गैर-कश्मीरियों से विवाहित स्त्रियों को भी इस अधिकार से वंचित करती है। तीसरा, सरकारी नौकरियां सिर्फ कश्मीरी ही ले सकते हैं, कोई अन्य भारतीय नहीं। चौथा, लोकसभा के चुनावों में तो कश्मीर का कोई भी गैर-कश्मीरी निवासी भी वोट दे सकता है लेकिन विधानसभा और स्थायी निकायों के चुनाव में किसी बाहरी आदमी को वोट डालने का अधिकार नहीं है। लेकिन सारे भारत में कश्मीरियों पर कोई रोक-टोक नहीं है। उन्हें भारत के हर प्रांत में वही अधिकार प्राप्त हैं, जो किसी भी नागरिक को हैं।

ऐसे में यह सवाल वाजिब लगता है कि वे ही अधिकार कश्मीर में हर भारतीय नागरिक को क्यों नहीं हैं ?क्या भारत में भी कश्मीरियों पर वे ही प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए, जो कश्मीर में भारतीयों पर हैं ? इसके अलावा यह भी बड़े खेद का विषय है कि 70 साल में हमारी राजनीति इतनी विचित्र क्यों रही कि कश्मीरियों ने धारा 370 और 35 ए को हटाने की मांग खुद क्यों नहीं की ? चुनाव के वक्त इस मुद्दे को उठाने की बजाय यदि मोदी सरकार अपने पहले हफ्ते में ही इसका हल कर देती तो क्या बात थी ?

यों भी धारा 370 को केंद्र सरकार ने दर्जनों बार ठोक-ठोककर पोला कर दिया है। अब इस मुद्दे को चुनाव के वक्त उठाने का लक्ष्य यदि राष्ट्रवादियों या हिंदुओं के वोटों को पाना है तो यह स्वाभाविक है लेकिन यह पैंतरा कश्मीरी नेताओं को भड़काए बिना नहीं रहेगा।

डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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