कम नहीं आयोग के पास ताकत

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चुनाव आयोग ही राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उनके चुनाव चिन्ह प्रदान करता है। मतदाता सूची भी भारत का चुनाव आयोग ही तैयार करवाता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता तैयार करना और लागू करवाना भी चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत के चुनाव आयोग के पास काफी ताकत हैं।

चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन से लेकर देश में चुनाव करवाने तक की जिम्मेदारी भारत के चुनाव आयोग की है। चुनाव आयोग ही राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उनको चुनाव चिन्ह प्रदान करता है। मतदाता सूची भी भारत का चुनाव आयोग ही तैयार करवाता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता तैयार करना और लागू करवाना भी चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत के चुनाव आयोग के पास काफी ताकत हैं।

चुनाव आयोग में तीन सदस्य होते है। मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा दो और चुनाव आयुक्त होते है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की उम्र, दोनों में से जो पहले हो, की आयु तक होता है। अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 साल या 62 वर्ष की उम्र, दोनों से जो पहले हो, तक होता है। भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक और स्वायत्त संस्था है, जिस तरह भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। सरकार इसके कामकाज में दखल नहीं दे सकती है या किसी तरह इसके कामकाज को प्रभावित नहीं कर सकती है। मुख्य चुनाव आयोग का दर्जा देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बराबर होता है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है। मुख्य चुनाव आयुक्त को आसानी से नहीं हटाया जा सकता है। उनको महाभियोग की प्रतिक्रिया से ही हटाया जा सकता है।

चुनाव आयोग सरकार को भी नेर्देश जारी कर सकता है। चुनाव संबंधित नियमों का उल्लंघन करने पर चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टोयों और उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी पार्टी सरकारी ताकतों का दुरुपयोग नहीं करें। चुनाव आयोग की ताकत इस बात से भी समझ सकते हैं कि चुनाव के दौरान हर सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग के अधीन काम करता है न कि सरकार के अधीन। देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने यह दिखाया था कि अगर चनाव आयोग खुद पर आ जाए तो क्या कर सकता है। जब वह देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे, उस समय चुनाव के बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं के बीच पैसे और चींज बांटकर उनको लुभाना, सत्ता का दुरुपयोग, ये सारी चीजें आम बात बन गई थी। उन्होंने इस सब बुराइयों पर गलाम कसा। देश के चुनाव के इतिहास में पहली बार उन्होंने असरदार ढंग से आचार संहिता को लागू किया।

चुनाव के दौरान भुजाबल और धनबल पर लगाम लगाया। जिन उम्मीदवारों ने चुनाव नियमों का उल्लंघन किया उनके खिलाफ केस दर्ज करवाया और उनको गिरफ्तार करवाया। उन्होंने भ्रष्ट उम्मीदवारों का साथ देने वाले अधिकारियों को उन्होंने निलंबित कर दिया। कई और मौकों पर भी चुनाव आयोग ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है। 1984 में कांग्रेस ने दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुहुणा को हराने के लिए अमिताभ बच्चन को उतारा था। चुनाव आयोग को लगा कि उनकी फिल्में मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने दूरदर्शन पर उनकी किसी भी फिल्म के प्ररसारण पर रोक लगा दी। सबसे बड़ी यह थी कि उस समय केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकरा थी लेकिन चुनाव आयोग ने कोई समझौता नहीं किया।

रविन्द्र कुमार
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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