ऑनलाइन कोचिंग: बड़ी खाई पैदा

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भारत में तकनीक के माध्यम से शिक्षा देने वाली यानी एजुटेक कंपनियों का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है। इस साल अकेले अगस्त में ही ऐसी तीन कंपनियां यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुईं। यूनिकॉर्न यानी एक अरब डॉलर से ज्यादा वैल्यू वाली कंपनी। अब यूनिकॉर्न क्लब में भारत की कुल 5 एजुटेक कंपनियां हैं। चीन में तो इन कंपनियों का साइज और भी बड़ा है। तो क्या वहां के स्कूली बच्चों का हाल भी हमारे बच्चों जैसा है? चेन्नै में स्कूल जाने वाले बच्चे के पैरंट्स और चीन के चेंगदू में रहने वाले पैरंट्स में कोई अंतर है? मां-बाप दोनों ही जगहों पर परेशान हैं। दोनों ही जगहों पर लोग अपने बच्चों के लिए अच्छी से अच्छी डिग्रियां चाहते हैं और उसके लिए अपनी सारी जमा-पूंजी दांव पर लगाने को तैयार हैं। स्कूली पढ़ाई खत्म होने के बाद पैरंट्स बच्चों को कोचिंग से लेकर लैपटॉप तक सारी सहूलियतें देने की कोशिश करते हैं, ताकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें। चीन में नैशनल कॉलेज एंट्रेंस एग्जामिनेशन गाओकाओ है, तो भारत में जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम यानी जेईई है।

एजुकेशनल टेक्नलॉजी कंपनियां तो हमारे यहां शुरुआती दौर में हैं। चीन में यह सब काफी पहले शुरू हो चुका है। वहां हुई एक स्टडी बताती है कि बड़े शहरों में पढ़ाई पर कुल खर्च का करीब 44 फीसदी हिस्सा ट्यूशन में जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा लगभग 16 फीसदी है। चीन में 2017 से 2019 के बीच प्राइवेट ट्यूशन में 30 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई। इधर, भारत में भी हर तीन में से एक स्कूली बच्चा कोचिंग या ट्यूशन ले रहा है। कोविड महामारी के दौर में तो ऑनलाइन कोचिंग को पंख लग गए। कोई भी एजुटेक कंपनी इसका फायदा उठाने में पीछे नहीं रही। चाहे वह भारत की बायजूज और अनएकेडमी हो या फिर चीन की न्यू ओरिएंटल एजुकेशन और कूलर्न। ऑनलाइन कोचिंग इंस्टिट्यूट की बाढ़ ने चीन को सत कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। उसने दिग्गज इंटरनेट कंपनियों की नकेल कसी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत को भी एजुटेक कंपनियों के लिए नियम कानून बनाने चाहिए? दरअसल चीन की तरह भारत में भी ऑनलाइन एजुकेशन की सुविधाओं ने एक बड़ी खाई बना दी है।

यहां तो पहले से पढ़ाई-लिखाई की एक जैसी सुविधा सबको नहीं मिल पा रही थी, अब डिजिटल दौर में यह अंतर और बढ़ रहा है। किसी बच्चे के पास लैपटॉप, टैबलेट, इंटरनेट सब कुछ है, दूसरे के पास कुछ भी नहीं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि चीन की सती ने इंडियन टेक इंडस्ट्री के लिए अपार संभावनाओं का दरवाजा खोल दिया है। एजुटेक फर्मों ने दो साल में कोचिंग से करीब 4 अरब डॉलर की कमाई की है। इसमें 50 फीसदी कमाई तो पिछले 6 महीने में ही हुई। बायजूज अब दुनिया की सबसे ज्यादा वैल्यूएशन वाली एजुटेक स्टार्टअप है। इन सबके बावजूद एजुटेक इंडस्ट्री के लिए कायदे-कानून का एक दायरा बनाना जरूरी है। चीन जितनी सती तो नहीं होनी चाहिए लेकिन सरकार को संतुलन बनाने के लिए कुछ करना होगा क्योंकि पैरंट्स की शिकायतों में बेतहाशा इजाफा हुआ है। इन कंपनियों के जाल में फंसने के बाद पैरंट्स पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जाता है। केवल मुनाफे के लिए काम करने वाली कई एजुटेक कंपनियां तो ‘कोचिंग इंस्टिट्यूट’ बन गई हैं।

ये कंपनियां कोचिंग इंस्टिट्यूट और मुनाफाखोरी करने वाले स्कूलों का विकल्प बनने आई थीं, लेकिन मुनाफा कमाने की होड़ में उन्हीं की तरह बनती जा रही हैं। एक बेसिक दिक्कत एजुटेक के स्ट्रक्चर से जुड़ी है। पढ़ाईलिखाई हर बच्चा अपनी स्पीड से करता है। सबकी समझ का अपना एक लेवल होता है और उसी हिसाब से सीखने से जुड़ी चुनौतियां होती हैं। लिहाजा, इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों का एकाधिकार रहेगा। उनका नेटवर्क कस्बों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक फैल जाएगा। वेंचर कैपिटलिस्ट जिस तरह से एजुटेक इंडस्ट्री पर दांव लगा रहे हैं, उससे यह समस्या और बढ़ रही है। पहले बड़े उद्योगपति अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जनता की भलाई वाले कामों में लगाते थे। लेकिन, अब उनका मकसद देश के तेजी से बढ़ते इंटरनेट मार्केट में निवेश कर मुनाफा कमाना भर रह गया है।

पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था हमेशा से सत निगरानी के दायरे में रही है। अब महामारी के चलते पढ़ाई-लिखाई का सारा सिस्टम ऑनलाइन हो गया है। ऐसे में यह देखना अजीब लगता है कि अरबों डॉलर वाली एजुटेक कंपनियों पर सरकार की ओर से कोई बंदिश नहीं है। यह दलील दी जा सकती है कि इनफॉर्मेशन टेक्नलॉजी की हालिया गाइडलाइंस में कंटेंट पब्लिशर्स के लिए डिजिटल कोड है। अगर ऐसी बात है, तो एजुटेक यूनिकॉर्न को उसके दायरे में लाया जाना चाहिए। निशीथ देसाई एसोसिएट्स की अटॉर्नी आरुषि जैन कहती हैं, ‘कंज्यूमर फोरम भी पीडि़त अभिभावकों और छात्रों की मदद कर सकते हैं।’ हालांकि, ये सभी कानून नए हैं। इन्हें और स्पष्ट करने की जरूरत है ताकि इनकी मदद से पैरंट्स और स्टूडेंट्स का शोषण रोका जा सके।

अरिजीत बर्मन
(लेखक शिक्षाविद हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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