एक जली हुई रोटी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन…

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बात उन दिनों की हैं जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न, मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बच्चे हुआ करते थे। एक रात वे अपने माता-पिता के साथ भोजन कर रहे थे। तभी उनकी दृष्टि अपने पिता की प्लेट पर गई। उन्होंने गेखा कि उनकी मां ने उन्हें जो रोटियां परोसी थी, वो जली हुई थी और उनके पिता बिना कुछ कहे शान्ति से उन जली हुई रोटियों को खा रहे थे।

जब उनकी मां ने जली हुई रोटियों के लिए उनके पिता से क्षमा मांगी, तो वे हंसते हुए होले, ‘कोई बात नहीं, मुझे तो जली हुई रोटियां पसंद है।’

यह सुनकर एपीजे अब्दुल कलाम आश्चर्य में पड़ गये। बाद में उन्होंने अपने पिता से पूछा क्या वाकई उन्हें जली हुई रोटियां पसंद है, तो उनके पिता ने उत्तर दिया, ‘एक जली हुई रोटी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन जले हुए शब्द बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं।’

सारांश – शब्दों में अद्भुत शक्ति होती है। इस शक्ति का उपयोग हमें संभलकर करना चाहिए। हमारे द्वारा कहे गए शब्द किसी को आहत कर सकते है और संबंधों में दरार डाल सकते है।

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