एक चाय जिसकी चर्चा नहीं होती

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आज आते ही तोताराम बरामदे को फीते से नापने लगा। कई देर नाप-जोख करने के बाद बोला- इस दरवाजे को बरामदे में मत खोल। इसे बंद कर दे और बरामदे के बगल की दीवार में गेट लगवा ले। हमने वैसे ही मजाक में पूछा- क्यों कोई वास्तु दोष है? बोला- वास्तु दोष का क्या है? यदि वास्तु वाले को भारत की समस्याओं का कारण और निवारण पूछा जाए तो वह कह देगा कि पाकिस्तानी आतंक वाद से बचने के लिए हिमालय को दक्षिण में ले जाओ और यहां हिन्द महासागर को फिट कर दो। हमने पूछा- तो क्या यहां से तेरे घर तक मेट्रो रेल का कोई प्रॉजेक्ट आ रहा है? बोला- मेट्रो का क्या है? बंगाल से शुरू होकर अब यह तमाशा सारे भारत में फैल गया है। विकास के नाम पर और कुछ नहीं तो मेट्रो बना दो। दस साल तक सडक़ें खुदी पड़ी रहेंगी।

जब तक मेट्रो बनकर तैयार होगी तब तक ट्रैफिक इतना बढ़ चुका होगा कि किसी तिमंजिली मेट्रो की जरूरत महसूस होने लगेगी। बंगाल में दस साल तक हरिसन रोड, बड़ा बाजार खुदे पड़े थे। हो सकता है कल हमारे दोनों के घरों के बीच दो सौ मीटर के लिए मेट्रो चल पड़े। हमने पूछा- तो फिर यह नाप-जोख किसलिए? बोला- बरामदे को सेपरेट करना पड़ेगा। आज नहीं तो कल इसे बंद करना पड़ सकता है। अच्छा हो अभी से तसल्ली से यह काम करा ले। इस बरामदे को राष्ट्रीय स्मारक घोषित होने में कया देर लगती है? हमें बड़ा आश्चर्य हुआ। हमारा यह छोटा-सा बरामदा जिसमें कई दशकों से बैठकर तोताराम के साथ चाय पी रहे हैं कैसे राष्ट्रीय महत्व का हो गया? पूछा तो बोला-किस्मत का किस को कुछ पता नहीं। जिस वडनगर के प्लेटफोर्म पर मोदी जी के पिताजी की चाय की दुकान थी अव वह एक पर्यटन स्थल बनने वाला है।

हमने भी इस बरामदे में बैठकर भारत के पिछले साठ साल के इतिहास को बनते-बिगड़ते देखा है। देश से संबंधित हर छोटे-बड़े विषय पर चाय के साथ चर्चा की है, विचार-विमर्श किया है, बड़े-बड़े मुद्दों पर मंथन किया है तो फिर यह स्थान राष्ट्रीय महत्व का क्यों नहीं हो सकता? हमने कहा-स्थान छोटा-बड़ा नहीं होता बल्कि उससे जुड़ा व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है महान व्यक्ति से जुड़कर छोटी-मोटी चीजें भी उसी तरह से महत्वपूर्ण हो जाताी हैं जैसे पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है। क्या तो गोडसे और क्या उसकी औकात लेकिन गांधी से जुड़कर वह भी अमर हो गया लेकिन हम कैसे इतने महत्वपूर्ण बन सकते हैं? बोला-तू न सही लेकिन कल को यदि मोदी जी मुझे राष्ट्रपति बना दें तो फिर लोग इस बरामदे को देखने जरूर आया करेंगे कि यह वह बरामदा है जहां भारत के राष्ट्रपति ने रोज सुबह बैठकर साठ बरस तक चाय पी थी। हमने कहा -सॉरी बन्धु इस संभावना के बारे में तो सोचा भी नहीं था।

रमेश जोशी
लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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