भले ही कोविड.19 पर काबू पाने के वास्ते दुनिया के तमाम हिस्सों में चल रहे शोध शैशवास्था में हैं,निकट भविष्य में कारगर वैसीन के निर्माण की कोई संभावना नहीं है। भारत के भीतर भी विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान इस दिशा में युद्ध स्तर पर जारी हैं लेकिन नतीजे अभी दूर की कौड़ी हैं। हां, इस बीच यह जरूर हो रहा है कि प्रायोगिक स्तर पर कहीं-कहीं विभिन्न दवाओं के समिश्रण से इस संकट पर काबू पाने की कोशिश दिखती है तो कहीं प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवों के भरोसे निपटने की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है। इसी दिशा में यहां भी प्लाज्मा थेरेपी से एक उम्मीद उठने के चलते आईसीएमआर ने उसे इलाज के लिए अनुमति प्रदान की थी। इसमें कोविड.19 से उभर चुके मरीजों के प्लाज्मा को गंभीर किस्म के मरीजों में देने की बात हुई थी। रोग से उभर चुके लोग भी इसके लिए अपना ये खून दान करने के लिए आगे आये।
लखनऊ में ऐसे ही कोरोना को मात दे चुके डॉक्टर तौसीक खान आगे आये और उनके प्लाज्मा को एक गंभीर किस्म की महिला को चढ़ाया गया। ऐसा देखा गया कि इसके बाद उस रोगी में एंटीबाडीज बनने लगी है, हालांकि अभी वह वेंटिलेटर पर ही है। लेकिन अब वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद ने इस थेरेपी पर प्रतिबंध लगा दिया है। कहना है कि यह थेरेपी अभी प्रयोग की स्थिति में है, इसलिए इसे सामान्य तौर पर अनुमोदित नहीं किया जा रहा है। इस नई परिस्थिति में ऐसे मरीज जिनके परिवारों की पूर्व सहमति होगी, उनका ही प्लाज्मा से इलाज होगा और अन्य मरीजों का जिनका बगैर प्लाज्मा के इलाज हो रहा है, वे बीच के अंतर शोधपरक अध्ययन के बाद मिले नतीजों से ही इस थेरेपी का भविष्य तय होगा। तो इस सबके बीच धैर्य और प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाले तत्वों का शोधन तथा योग- व्यायाम ही एक रास्ता बचता है, जिस पर आगे बढऩा और संकट के पार जाना ही विकल्प है।
एक कहावत है, उमीद पर दुनिया कायम है। कैलीफोर्निया के शोधार्थियों का मानना है कि दुनिया में दिसंबर तक यह महामारी पूरी तरह अपने खात्मे पर होगी, भारत में सितंबर तक होने की उम्मीद है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में हमारे यहां ग्रहों के संयोग को लेकर भी इन दिनों जो धारणाएं सामने आ रही हैं, वे भी आशान्वित करने वाली हैं। कहा जा रहा है कि गुरु और शनि के राशि परिवर्तन से केतुजनित प्रकोप कम होगा। उम्मीद जताई जा रही है कि 13 मई के बाद स्थिति उत्तरोत्तर सुधार पर होंगी। कहने का आशय है कि इन चुनौतियों के बीच उमीद के चर्चे भी हैं। वैसे भी भारतीय मनीषा हर स्थिति में अपने लिए अनुकुलता खोज लेती है, यही इसकी ताकत भी है। शायद यही वजह है कि जहां कोरोना को लेकर दुनिया के तमाम हिस्सों में लोगों में बड़ी तेजी से मानसिक रोग भी फैल रहे हैं। अवसाद के मामलों से जूझने के लिए मनोचिकित्सकों को भी संकट की इस घड़ी में अपने स्तर पर अलग से उतरना पड़ा है। वही भारतीय अपने नियतिवाद के प्रति आस्थावान होने के कारण इस मानसिक व्याधि से कमोवेश बचे हुए हैं।