इस साल धरती बचाने की मुहिम तेज हो

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विश्व स्तर पर हम इस समय इतिहास के ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें मनुष्य के सामने पर्यावरण व सुरक्षा के क्षेत्रों में ऐसी अभूतपूर्व चुनौतियां हैं जिनसे धरती की जीवनदायिनी क्षमताएं खतरे में हैं। यदि इस नजरिए से वर्ष 2019 को देखें तो इन चुनौतियों का सामना करने में यह वर्ष भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सका। दुनिया के कुछ भागों में महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने वाले कई आंदोलनों में उभार आया तो है, पर अभी यह इतना व्यापक या मजबूत नहीं है कि इससे बहुत उम्मीद बन सके। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का सिलसिला जारी रहा, पर इनकी सीमाएं भी सामने आईं। दूसरी ओर अमेजन वनों के बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही व आग से संकेत मिला कि धरती की रक्षा संबंधी वैज्ञानिकों की तमाम चेतावनियों का खतरनाक हद तक तिरस्कार भी हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में स्वीडन की 16 वर्षीय पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने अपने संबोधन में संसार के तमाम बड़े नेताओं पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने में नाकाम रहने और इस तरह नई पीढ़ी से विश्वासघात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अपनी खोखली बातों से आपने मेरे सपने और मेरा बचपन छीन लिया है। लोग त्रस्त हैं, लोग मर रहे हैं, पूरी पारिस्थितिकी ध्वस्त हो रही है। हम सामूहिक विलुप्ति के कगार पर हैं और आप पैसों के बारे में तथा आर्थिक विकास की काल्पनिक कथाओं के बारे में बातें बना रहे हैं।

लेकिन उसके भाषण की तारीफ करने के अलावा राष्ट्राध्यक्षों ने शायद ही कुछ और किया। स्पेन की राजधानी मैड्रिड में अब तक का सबसे लंबी अवधि तक चला सम्मेलन कॉप 25 बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गया। दरअसल कुछ बड़े देशों की हठधर्मिता के कारण पर्यावरण का मुद्दा फंस गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द ग्लोबल लाइमेट’ में साफ कहा गया है कि राजनेताओं के रवैये के कारण पेरिस संधि का लक्ष्य निर्धारित समय पर तो या, देर से भी पूरा होना कठिन है, जिसके चलते हालात सुधरने के बजाय दिनोंदिन और बिगड़ते ही जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कमी न आ पाने के चलते ही बीते पांच साल धरती के दर्ज इतिहास में पांच सबसे गर्म सालों के रूप में दर्ज हो गए हैं। हथियारों को रोकने के लिए कोई बड़ी पहल नहीं हुई। अमेरिका और रूस के बीच इन हथियारों के उपयोग को रोकने के समझौते और कमजोर पड़े। तमाम चेतावनियों को दरकिनार करते हुए रोबॉट या एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) हथियारों में भारी निवेश जारी रहा। ईरान, इराक, तुर्की, मिस्र, इजरायल, सऊदी अरब जैसे मध्य-पूर्व के सभी प्रमुख मुल्कों की आंतरिक स्थिति भी चिंताजनक बनी रही। अफ्रीका के अनेक देशों में आजीविका व आंतरिक हिंसा के संकट बढ़ रहे हैं।

इस तरह 2018-19 के दशक के अंतिम वर्ष के विषय में कहा जा सकता है कि यह काफी हद तक खोए अवसरों का वर्ष रहा। वर्ष 2018 के अंत में ही विश्व के जलवायु विशेषज्ञों के सबसे प्रतिष्ठित समूह ने यह चेतावनी घोषित कर दी थी कि जलवायु बदलाव के संकट के समाधान के लिए 2030 तक का ही समय बचा है। इसलिए वर्ष 2019-30 के दौरान इस संकट को कम करने के लिए बहुत बड़े प्रयासों की जरूरत है। इस चेतावनी के बावजूद इन प्रयासों में वर्ष 2019 में कोई बड़ा उभार नहीं आ सका। दूसरी ओर अमेरिका जैसे अधिक महत्वपूर्ण देश में सरकारी स्तर पर इस अहम जिम्मेदारी के प्रति अवहेलना बढ़ती नजर आई। अब हमारे सामने नया वर्ष 2020 है। यह केवल एक नए वर्ष 2020 के आरंभ का समय नहीं है बल्कि एक दशक 2020-30 के आरंभ का समय है।एक ऐसा दशक जिसके बारे में कहा जा रहा है कि संभवत: यह मनुष्य इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दशक होगा योंकि इसी दशक में मनुष्य को यह तय करना है कि धरती की जीवनदायिनी क्षमता की रक्षा होनी है या नहीं। यदि इस दशक में भी पिछले दशक की तरह इस जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही बरती गई तो फिर स्थिति मनुष्य के नियंत्रण से बाहर निकल सकती है, जैसा कि अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं।

इस दशक के आरंभ से ही यानी वर्ष 2020 की शुरुआत से ही विश्व स्तर पर धरती की जीवनदायिनी क्षमताओं की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना बहुत जरूरी हो गया है। इसके लिए संकीर्ण सोच से ऊपर उठना जरूरी होगा जो इस समय विश्व पर हावी है। यह बहुत जरूरी है कि अमन-शांति की ताकतों में व पर्यावरण रक्षा के जन-आंदोलनों में बड़ा उभार आए। यह भी इतना ही जरूरी है कि धरती की जीवनदायिनी क्षमताओं की रक्षा के प्रयास न्याय व समता के दायरे में रहें, क्योंकि तभी वे टिकाऊ हो सकते हैं व उन्हें विश्व के अधिकांश लोगों का उत्साहवर्धक समर्थन मिल सकता है। उदाहरण के लिए यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में पर्याप्त कमी की समयबद्ध योजना बनानी है, तो यह भी ख्याल में रखना होगा कि इससे सामंजस्य रखते हुए लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के भी कार्यक्रम बनें, तभी जलवायु बदलाव के बड़े संकट का न्यायसंगत समाधान संभव होगा। इस तरह पर्यावरण रक्षा के सरोकारों को न्याय व समता के सरोकारों के नजदीक लाना महत्वपूर्ण हो गया है। निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो अमन शांति के सरोकारों को इन दोनों से जोड़कर एक समग्र कार्यक्रम विकसित करना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है।

भारत डोगरा
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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