इस्लामी जगत में भारत का डंका

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भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ‘इस्लामी सहयोग संगठन’ के 50 वें महाधिवेशन में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल हुईं और उन्होंने वहां प्रभावशाली भाषण दिया। यह हमारी कूटनीतिक विजय है। पुलवामा—कांड और पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर हमारे हमलों के बाद भी इस्लामी संगठन ने सुषमा की शिरकत को रद्द नहीं किया, यह अपने आप में भारत की उपलब्धि है। इस उपलब्धि में चार चांद और लग गए, जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस अधिवेशन का बहिष्कार कर दिया लेकिन उसके बावजूद वहां सुषमा का भाषण हुआ।

इस्लामी संगठन किसी प्रमुख इस्लामी देश के विरोध को रद्द कर दे और गैर—इस्लामी राष्ट्र को विशेष अतिथि बनाए, यह किस बात का सूचक है? एक तो यह कि दुनिया के राष्ट्र अब भारत को दक्षिण एशिया की महाशक्ति मानने लगे हैं। दूसरा, यह कि इस्लामी देशों में भी अब उदारता का नया दौर शुरु हुआ है। इसे मैं यदि ‘नया इस्लाम’ कहूं तो गलत नहीं होगा। तीसरा, सउदी अबर और संयुक्त अरब अमारात, ये दोनों देश ऐसे है, जो पाकिस्तान की दिल खोलकर मदद करते रहे हैं और एक जमाने में उसके भारत—विरोधी रवैये को प्रोत्साहित भी करते रहते थे लेकिन इन दोनों प्रमुख इस्लामी देशों के वर्तमान शासक उनके युवराज हैं। दोनों आधुनिकता से ओत—प्रोत है।

दोनों अपने—अपने देश में तरह—तरह के आधुनिकीकरण के प्रयोग कर रहे हैं। इस पचासवें इस्लामी अधिवेशन में भारत का स्वागत करके उन्होंने इसी विचार—शैली को आगे बढ़ाया है। उनका यह कृत्य अभिनंदनीय है। जरा हम यह सोचें की पाकिस्तानी विदेश मंत्री यदि सुषमा के भाषण के दौरान वहां मौजूद होते तो क्या होता ? वही होता, जो मैंने पिछले हफ्ते लिखा था। हंगामा खड़ा हो जाता। हंगामा नहीं हुआ, इसीलिए मैं उनके बहिष्कार का भी स्वागत करता हूं। अब रही बात सुषमाजी के भाषण की तो मैं यही कहूंगा कि वह थोड़ा बेहतर हो सकता था लेकिन ऐसे तनाव के वक्त वे जो बोलीं, वह भी काफी अच्छा था।

सबसे पहले तो पाकिस्तान का नाम लिए बिना, उन्होंने उसे खरी—खरी सुना दी। उसे आतंकवाद का पिता सिद्ध कर दिया। दूसरा, उन्होंने भारतीय मुसलमानों की संख्या 18—19 करोड़ बताई और उनकी भारतीयता पर जोर दिया, जैसा कि मैं हमेशा इस्लामी देशों में अपने भाषणों में कहता हूं। इसी देश में 15 साल पहले अपने एक भाषण में मैंने कहा था कि भारतीय मुसलमान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मुसलमान है। वहाँ मैंने तर्कों से यह सिद्ध किया था।

तीसरा, सुषमाजी ने इस्लाम के नाम के अनुसार उसे सलामती या शांति का धर्म बताया और कहा कि अरबी भाषा में अल्लाह के जो 99 नाम हैं, उनमें से एक भी हिंसा ( तशद्दुद ) का घोतक नहीं है। मैं समझता हूं कि अरब देशों से भारत के संबंधों को घनिष्ट बनाने और पाकिस्तान पर इस्लामी दबाव लाने की दृष्टि से इस घटना का एतिहासिक महत्व माना जाएगा। इस्लामी जगत में भारत का डंका बजाने के लिए सुषमा स्वराज बधाई की पात्र है।

               डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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